महाभारत की कथा और कहानी कौन नहीं जानता लेकिन ज्यादा तर लोग महाभारत में दिए गए गीता का उपदेश और पांचो पंडयो के बारे में ही विस्तार से जानते है ! परन्तु पुरे विश्व को एक दोस्ती के तौर पे मिशाल देने वाली दोस्ती का भी उल्लेख है जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते है
गुरु द्रोणचार्य जो पांडवो के गुरु थे उन्होंने पांडवो और कौरवो में एक प्रतियोगिता रखी ! गुरु द्रोणचार्य ने उस प्रतियोगिता में कई तरह के करतब दिखाने का आयोजन किया था ! ये प्रतियोगिता केवल पांडवोऔर कौरवो में ही नहीं बल्कि राज्य के कई और राजकुमारों के बीच होने वाली थी !
इस पूरी प्रतियोगिता में अर्जुन ने अपने करतब दिखाते हुए सर्वश्रेस्ट प्रदर्शन किया था ! परन्तु उसी बीच उस प्रतियोगिता में कर्ण पहुंच गए ! कर्ण भी अर्जुन की तरह सभी करतब में सर्वश्रेस्ट प्रदर्शन कर रहे थे , तभी कर्ण ने अर्जुन को मुकाबले के लिए ललकारने लगे ! लेकिन गुरु द्रोणचार्य ने इस मुकाबले को होने से रोक दिया , क्योंकि गुरु द्रोणचार्य को पता था की एक कर्ण ही है जो अर्जुन के बराबर के योद्धा है ! गुरु द्रोणचार्य ने कर्ण को यह कहकर मुकाबले से बाहर कर दिया की कर्ण कोई राजकुमार नहीं है ! ये पूरी प्रतियोगिता सिर्फ राज्य के राजकुमार के लिए ही रखी गयी है !
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दुर्योधन कदापि नहीं चाहता था की ये प्रतियोगिता अर्जुन जीते , इसलिए कर्ण प्रतियोगिता में हिंसा ले सके उसके लिए उसने कर्ण को अंग देश का राजा बना दिया ! जिसके बाद कर्ण को अंगराज के नाम से बुलाया जाने लगा ! एक राज्य का राजा होने के नाते अब कर्ण प्रतियोगिता में भाग ले सकता था ! इस घटना के बाद कर्ण दुर्योधन का परम मित्र बन गया और सदैव उनका आभारी रहा ! इस घटना के बाद कर्ण सदैव दुर्योधन का ईमानदार साथी और दोस्त बनकर रहा !
Mahabharat ki katha hindi kahani karan aur duryodhan ki dosti
कर्ण भले ही किसी राज्य के राजकुमार ना रहें हो परन्तु वो बहुत समझदार और सभी गुणों से परिपूर्ण थे ! और यही कारण था की वो हमेशा अपने मित्र दुर्योधन को एक योद्धा की तरह लड़ने की सलाह देते थे ! दुर्योधन अपने ज्यादा तर फैसले अपने मामा की सलाह पर ही लेते थे , जो की बिलकुल भी सही नहीं होता था ! शकुनि मामा हमेशा पंडयो के साथ छल करने की सलाह दिया करता था ! परन्तु कर्ण दुर्योधन को हमेशा समझाते थे, की आप एक राजकुमार हो , आपको एक योद्धा की तरह लड़ कर अपने हक़ को प्राप्त करना चाहिए !
शकुनि के कहने पर एक बार दुर्योधन ने पांडवो को जला कर मारने की योजना बनाई जिसमें योजना के तहत लाछागृह का निर्माण करवाया गया ताकि पांडवो को उस महल में जला कर मारा जा सके ! इस योजना की बात जब कर्ण को पता चली तो वो दुर्योधन को समझाने लगे की छल कपट करके आप अपनी कायरता का परिचय करा रहे है , आप तो एक योद्धा है जिसे युद्ध के मैदान में अपनी वीरता का परिचय कराना चाहिए !
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कर्ण ने दुर्योधन की हर मुसीबत हर बुरे से बुरे वक़्त में साथ दिया ! दुर्योधन चित्रांगद की राजकुमारी जो बहुत खूबसूरत थी उससे विवाह करना चाहता था ! लेकिन राजकुमारी दुर्योधन से विवाह करने के लिए मना कर देती है ! दुर्योधन को इस बात से बहुत गुस्सा आता है और गुस्से से लाल हो वो राजकुमारी को जबरदस्ती उठा लाता है ! कई राज्यों के राजा इस बात से नाराज़ होकर दुर्योधन को मारने के लिए पीछे पड़े हुए थे ! परन्तु कर्ण ने दुर्योधन के साथ मिलकर सभी राजा से लड़ाई लड़ी और सभी को पराजित किया ! महाभारत एक ऐसी कथा है जो अंगराज कर्ण के बिना अधूरी है और महाभारत में कई बार कर्ण की वीरता का जिक्र किया गया है !