एक बार गांधी जी अपने आश्रम में पेड़ के नीचे बैठ कर लोगो से बात कर रहे थे तभी वहां एक सन्यासी जी आये ! उस सन्यासी की गांधी जी से मिलने की बहुत इच्छा थी गांधी जी से मिलते ही उसने कहा यदि सच्चे मन से देश की सेवा की जाए तो वह असली तपस्या है कृपया गांधी जी मुझे भी यह अवसर दीजिए गांधी जी सन्यासी की आवाज सुनकर बोले यह तो बहुत खुशी की बात है कि आप देश के प्रति इतना सोच रहे हो और देश की सेवा करना चाहते हो आप जैसे लोगों के लिए ही यह आश्रम बना हुआ है लेकिन अगर आपके मन में सेवा करने का भाव है तो आपको बुरा ना लगे तो मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूं ! सन्यासी बोला ” कहिए गांधी जी आप क्या निवेदन करना चाहते हैं आप जो भी कहेंगे मैं उसे पूरी तरह से पूर्ण करने का कोशिश करूंगा !
गांधीजी ने सन्यासी की ओर देखते हुए कहा कि अगर आप देश सेवा करना चाहते हैं तो यह जो वस्त्र आपने गेरुआ रंग का पहन रखा है इसे छोड़ना होगा !
गांधी जी की यह बात सन्यासी सुनकर बड़ा हैरान हुआ ! सन्यासी बोला ” गांधी जी पर यह कैसे संभव है मैं तो सन्यासी हूं और सन्यासी गेरुआ वस्त्र धारण करके ही अपना जीवन यापन करते हैं ! गांधीजी सन्यासी की तरफ देखते हुए बोले आप बिल्कुल सही कह रहे हैं एक संन्यासी हमेशा गेरुआ रंग ही धारण करता है लेकिन गेरुआ रंग छोड़ने के पीछे बहुत बड़ा तात्पर्य है हमारे देश में गेरुआ वस्त्र धारण करने वालों को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है इन वस्त्रों के कारण लोग आपके द्वारा की जाने वाली सेवाएं स्वीकार नहीं करेंगे इस वस्त्र की वजह से लोग आप से नहीं जुड़ पाएंगे, लोग आपसे दूर भागेंगे और आपकी सेवा को स्वीकार नहीं करेंगे तो ऐसे वस्त्र को धारण करने से आप देश सेवा कैसे कर पाएंगे जो वस्त्र या प्रतीक हमारे सेवा कार्य में बाधा डाले उसका मोह छोड़ देने से ही लाभ मिलेगा फिर संन्यास तो मानसिक प्रवृत्ति है जो कि मन से दिया जाता है एक सन्यासी को वस्त्र के रंग से क्या लेना देना और आप ही बताइए इस आश्रम में अगर आप गेरुआ रंग पहनकर के सफाई का कार्य करेंगे तो भला कौन आपको यह कार्य करने के लिए देगा गेरुआ रंग हमारी धार्मिक आस्था का प्रतीक है इसलिए वह धार्मिक आस्था के लिए बना हुआ है उसे इस आश्रम में हम धारण नहीं कर सकते हैं और लोगों की धारणा आपको सम्मान देने में लगी रहेगी आपसे सेवा लेने में नहीं जिसके कारण कार्य में रूकावट होने पर वह अच्छी तरह से संपन्न भी नहीं हो पाएगा ! मैं केवल व्यावहारिक नजरिए से सोच रहा हूं इसके पीछे कोई आग्रह नहीं है आप को ठीक लगे तो अच्छी बात है नहीं तो आपकी जैसी इच्छा !
सन्यासी गांधी जी की इन बातो को सुनकर बहुत अधिक प्रभावित हुआ और उसने उसी वक्त गेरुआ वस्त्र त्याग दिया।
कहानी का सार :-
सेवा करने का भाव आप अपने अंदर तभी ला सकते है जब आप सामाजिक तौर पर सभी को एक नजरिये से देखो ! अगर आप सच्चे भाव से सेवा करना चाहते हो तो छोटे और बड़े व्यक्ति की सोच आपको अपने मन से निकालनी होगी !