“मैं 12वीं क्लास की विदाई समारोह में अपनी आंखों के सामने अपना बचपन खोते हुए देख रहा था”
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बहुत लंबा वक्त गुजर चुका होता है जब हम 12वीं क्लास की उस चौखट पर पहुंच जाते हैं जहां से हमारे और हमारे दोस्तों के रास्ते अलग हो जाते हैं जीवन का वह हर पल दिन और वह रात में जो सिर्फ हंसी मजाक खेल कूद और लड़ने झगड़ने में गुजर चुकी होती है गुजरी वह 18 साल पीछे की जिंदगी ऐसे गुजर गई हो मानो कोई 3 घंटे की मूवी देख कर उठे हो मां की गोद में होश संभाला कब बिस्तर से उठ जमी पर उतरा और कब कमरे की चौखट पार कर बाहर खेलने निकला दुनिया की ऊंची नीची बातों को पापा से सीखते सीखते और अपने भाई-बहनों के साथ पढ़ते खेलते इतने बड़े हो गए पता ही नहीं चला बचपन के खेलों में पड़ोसी के बच्चों के साथ चंद खिलौने ले आपस में एक दूसरे को मम्मी पापा बनाकर वह मासूमियत भरी आवाज में एक दूसरे को पढ़ने को भेजते थे फिर खुद ही पापा बन बच्चों को डांटते जो कभी खेल था यकीन नहीं होता वह खेल इतनी जल्दी हकीकत में बदलने के लिए इतनी जल्दी हमारे सामने आ जाएगा !
बड़ी अजीब होती है यह 18 साल वाली उम्र बचपन के गुजर जाने का जरा भी एहसास नहीं होता क्योंकि आगे की दिख रही ख्वाबी और लुभावनी दुनिया देखने और उन तक पहुंचने की ललक और चमक में हमें एहसास ही नहीं होने देता कि हम अपने बचपन से विदा ले रहे हैं न जाने कितने दोस्त जो बचपन से हमारे साथ खेले लड़े और नाराज हुए फिर भी दोस्त भी बने कोई कहीं तो कोई कहीं चला जाएगा आने वाले दिन हमें इतना व्यस्त कर देने वाला है कि ना हम अपने बचपन से मिल पाएंगे ना अपने दोस्तों से सबके रास्ते अलग हो जाएंगे जब हम सब 12वीं क्लास के पेपर देकर बाहर निकलेंगे!
यह सब 12वीं क्लास के विदाई समारोह में बैठकर मैं सोच रहा था सब कुछ हर दिन की तरह था पर कुछ तो था जो मैं खो रहा था वह बचपन जिसमें गलतियां करने पर भी मां हमें माफ कर दिया करती थी जिस बचपन में हम कुछ भी करें जाने दो बच्चा है कह कर टाल दिया जाता है मैं खो रहा था अपने दोस्त जो एक आवाज में किसी से भी हमारे लिए लड़ने को तैयार हो जाते थे ऐसे दोस्त जो हमारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं वो स्कूल जहां से क्या कुछ नहीं सीखा मैं खो रहा था उन टीचर को जिन्होंने हमें समाज की सही गलत चीजों को समझाया था यह बचपन भी अजीब था हमसे वह चीजें छीन रहा था जो हमेशा हमारे साथ होती थी वह हमारी मासूमियत जिसे देख मेरे मम्मी पापा अक्सर हंस दिया करते थे मैं वह खो रहा था जो बचपन में कुछ भी पाने के लिए जिद करते और मिल जाया करती थी आज लग रहा है कि कितना बेमतलब था वह नीम के पेड़ के नीचे मिट्टी में मिट्टी के घर बना कर घंटो अपने कपड़ों को गंदा करते थे और वह नीम का पेड़ हमें चुपचाप खेलता देख धूप से बचने के लिए हमें छांव दिया करता था मैं उस नीम के पेड़ की छांव को खो रहा था
“मैं 12वीं क्लास की विदाई समारोह में अपनी आंखों के सामने अपना बचपन खोते हुए देख रहा था”
वह दिन मेरी जिंदगी का ऐसा दिन था जिस दिन मैं जिंदगी में पहली बार कुछ खो रहा था जो शायद सभी की जिंदगी की सबसे प्यारी चीज होती है और वह है उसका बचपन :-
मौज मस्ती का यह फसाना हमें
याद हर पल आएगा यह अफसाना हमें
करेंगी बेकरार यह यादें इस कदर
याद हर पल आएगा ये आशियाना हमें
बचपन का सफर सिमट आया ऐसे
कम लगने लगा सफर बचपन का हमें
न जाने कहां जाएंगे यहां से लोग
हर पल रुलाएगा यह दोस्ताना हमें
याद आती रहेगी हमेशा उनकी
जिन दोस्तों ने दोस्त बनाया हमें
सही गलत का फर्क सीखा जिन गुरुओं से हमने
बिछड़ जाएंगे आज हम सभी उनसे
मौज मस्ती का यह फसाना हमें
याद हर पल आएगा यह अफसाना हमें
करेंगी बेकरार यह यादें इस कदर
याद हर पल आएगा ये आशियाना हमें
By Vivek Singh