महात्मा गांधी जी के दादाजी उत्तमचंद गांधी जी जो की बहुत ही ईमानदार और सज्जन व्यक्ति थे जिन्हें लोग कोटा गांधी भी कह कर बुलाते थे उत्तमचंद गांधी जी पोरबंदर राज्य के वरिष्ठ दीवान थे ! जिस राज्य में वो रहते थे वहां के राजा बहुत सज्जन थे लेकिन रानी बहुत हटी और कान की कच्ची थी जब तक राजा थे तबतक तो उस राज्य का कार्य भार और शासन बहुत ही अच्छा चल रहा था परन्तु अचानक से राजा की मृत्यु के पश्चात शासन की बागडोर पूरी तरह से रानी के हाथ में आ गई उस समय राज्य का खजांची खीमा भंडारी था जो उत्तमचंद गांधी जी की ही तरह बेहद ईमानदार और वफादार था !
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एक बार रानी की सेविका ने अपने इस्तेमाल के लिए भंडारी खजांची खीमा से कुछ फालतू पैसे मांगे भंडारी ने साफ मना कर दिया और बोला की जब तक रानी का आदेश नहीं होगा मैं एक भी रुपये तुम्हे नहीं दूंगा रानी की सेविका ने बात को बढ़ा चढ़ा के उसमें नमक मिर्च लगाकर इसकी शिकायत रानी से कर दी ! रानी जो की बड़ी हठी थी बिना सारी बात को जाने ही खजांची की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया खजांची खीमा को इस बात की खबर लगी तो वह भागकर उत्तमचंद गांधी के घर पहुंचा और उसके साथ घटित सारी बात को विस्तार से बताया ! गांधी ने सारी बात को समझने के बाद खीमा को कहा की कुछ दिन तुम मेरे ही घर पर रुक जायो ! मैं खुद रानी जी से इस विषय में बात करूँगा, और फिर रानी जी से बात करने के लिए निकल पड़े !
गाँधी जी रानी के पास गए और खजांची खीमा की ईमानदारी और वफादारी का हवाला देते हुए उसे माफ करने की गुहार लगायी ! लेकिन उस सेविका ने खीमा के खिलाफ रानी के कान इस तरह भरे थे की रानी उसे माफ़ करने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी रानी गाँधी जी की तरफ देख कर तेज़ आवाज में बोली उस खजांची खीमा को तो मृत्यु दंड मिलना चाहिए ! गांधीजी ने हर तरीके से रानी को समझाने की कोशिश की परन्तु रानी नहीं मानी ! गाँधी जी ने रानी से कहा की खीमा को मैं अपने घर पे रख रखा है, और मैं उसकी रक्षा करूँगा चाहे मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाये, और यह कह कर वो वहाँ से लौट आये ! गाँधी जी की बात सुनकर रानी को और क्रोध आया और उसी वक़्त उन्होंने सैनिको को आदेश दिया की गाँधी के घर पर खीमा छुपा हुआ है जायो उसे पकड़ कर लाओ और अगर खीमा घर से बाहर ना निकले तो गाँधी का घर जला देना !
गाँधी जी को रानी के इस आदेश का पता लगते ही वो खीमा को चुपके से उसे दूसरे राज्य में भेज दिए और खुद घर के बाहर पुरे परिवार के साथ बैठ गए ! थोड़ी देर बाद जब गाँधी जी के दरवाजे पे सेना नायक गुल मोहम्मद पंहुचा तो उसने गाँधी जी से खीमा को घर से बाहर निकालने के लिए बोला ! इस पर गाँधी जी ने उस सेना नायक को जवाब दिया की मैं खीमा नायक को बचाने का वचन दे चूका हू और अगर मुझे अपने वचन को पूरा करने में मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाये मैं पीछे नहीं हटूंगा ! आप अपना काम करे ! सेना नायक ने गाँधी जी को कहा मैं भी एक ईमानदार सैनिक हू देश भक्त दीवान के लिए अपनी जान दे सकता हू और यह कहकर सेना नायक गुल मोहम्मद फौज लेकर लौट गया !
कहानी का सार :-
अपने जीवन में हमें अपने कर्तव्य के लिए इतना ईमानदार और वफादार होना चाहिए की उसके लिए अगर हमारी जान भी चली जाये तो हमें कोई परवाह नहीं होनी चाहिए !