होली कब है 2025: होली क्यों मनाई जाती है?

होली कब है 2025: होली क्यों मनाई जाती है?

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1 होली कब है 2025: होली क्यों मनाई जाती है?
1.2 होलिका दहन 2025

होली 2025 में कब है?

होली भारत का एक प्रमुख और हर्षोल्लास से भरा त्योहार है, जिसे हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक है। वर्ष 2025 में होली 14 मार्च (गुरुवार) को मनाई जाएगी।

होली का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह पर्व प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ा है, जिसमें भक्त प्रह्लाद की भक्ति ने अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका के छल को विफल कर दिया था। इस घटना की स्मृति में होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई के अंत और सत्य की विजय का प्रतीक है।

रंगों की होली, जिसे धुलंडी कहा जाता है, अगले दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है। लोग एक-दूसरे को गुलाल और रंग लगाकर शुभकामनाएँ देते हैं। इस दिन विशेष मिठाइयाँ जैसे गुजिया, मालपुआ और ठंडाई का आनंद लिया जाता है।

होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि समाज को एकजुट करने का माध्यम भी है। यह हमें पुराने गिले-शिकवे भूलकर प्रेम और सौहार्द बढ़ाने का अवसर देता है।

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होलिका दहन 2025

होली भारत के प्रमुख और हर्षोल्लास से भरे त्योहारों में से एक है, जिसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द और सामाजिक एकता का प्रतीक है। वर्ष 2025 में यह उत्सव 13 और 14 मार्च को मनाया जाएगा।

होली का पर्व दो दिनों तक चलता है। पहले दिन होलिका दहन या छोटी होली होती है, जो 13 मार्च (बुधवार) को मनाई जाएगी। इस दिन लोग लकड़ियाँ और उपले जलाकर पवित्र अग्नि में अपनी नकारात्मकता को समाप्त करने का संकल्प लेते हैं। यह प्रह्लाद और होलिका की पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें भक्त प्रह्लाद की भक्ति के आगे होलिका का छल विफल हो गया था।

दूसरे दिन, 14 मार्च (गुरुवार) को रंगों की होली या धुलंडी मनाई जाएगी। इस दिन लोग गुलाल और रंगों से खेलते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं और विशेष पकवानों जैसे गुजिया, मालपुआ, ठंडाई आदि का आनंद लेते हैं।

होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने का अवसर भी है, जहाँ लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर नई शुरुआत करते हैं।

होली क्यों मनाई जाती है?

होली का पर्व ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से भरपूर है। इसे मनाने के पीछे कई मान्यताएँ और कथाएँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा भक्त प्रह्लाद और होलिका की है।

भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा

होली का सबसे प्रसिद्ध पौराणिक प्रसंग हिरण्यकशिपु, होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। प्राचीन समय में हिरण्यकशिपु नामक एक अहंकारी राजा था, जो स्वयं को भगवान मानता था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। यह देख हिरण्यकशिपु ने उसे कई यातनाएँ दीं, लेकिन वह अपनी भक्ति से विचलित नहीं हुआ।

हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, ने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है, जिसमें लोग आपसी प्रेम और भाईचारे को प्रकट करने के लिए रंग-गुलाल खेलते हैं और पारंपरिक मिठाइयों का आनंद लेते हैं।

राधा-कृष्ण और होली का प्रेम

होली का एक और गहरा संबंध भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम से भी है। मान्यता है कि बाल्यकाल में कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से शिकायत की थी कि उनकी त्वचा सांवली है, जबकि राधा गोरी हैं। तब माता यशोदा ने उन्हें राधा और गोपियों पर रंग लगाने की सलाह दी। कृष्ण ने राधा पर रंग डालकर होली खेलने की परंपरा शुरू की, जो आज भी वृंदावन और बरसाना में विशेष रूप से मनाई जाती है।

बरसाना में लट्ठमार होली प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएँ पुरुषों पर प्रेमपूर्वक डंडे (लट्ठ) बरसाती हैं और पुरुष ढाल लेकर खुद को बचाते हैं। यह अनोखी परंपरा आज भी हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।

होली का यह पर्व प्रेम, उल्लास और भाईचारे को प्रकट करता है, जिसमें लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं तथा मिठाइयों का आनंद लेते हैं।

होली का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व

होली भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को आता है और दो दिनों तक चलता है—पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन रंगों की होली। वर्ष 2025 में होलिका दहन 13 मार्च (बुधवार) को और रंगों की होली 14 मार्च (गुरुवार) को मनाई जाएगी।

धार्मिक और पौराणिक महत्व

होली का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है।

1. प्रह्लाद और होलिका की कथा:
प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नामक एक अहंकारी राजा था, जो स्वयं को ईश्वर मानता था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई यातनाएँ दीं, लेकिन वह अपनी भक्ति से विचलित नहीं हुआ।

हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, ने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

2. श्रीकृष्ण और राधा की प्रेम कथा:
होली का एक और महत्वपूर्ण संबंध भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम से भी जुड़ा है। माना जाता है कि बाल्यकाल में कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से शिकायत की थी कि उनकी त्वचा सांवली है, जबकि राधा गोरी हैं। तब माता यशोदा ने कृष्ण को राधा पर रंग लगाने की सलाह दी। तभी से वृंदावन और बरसाना में रंगों की होली खेली जाती है। बरसाना की लट्ठमार होली विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहाँ महिलाएँ पुरुषों पर प्रेमपूर्वक डंडे बरसाती हैं।

वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व

होली केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

1. पर्यावरणीय और स्वास्थ्य लाभ:

  • होली का पर्व वसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है। इस समय मौसम बदलता है, जिससे शरीर पर बैक्टीरिया और वायरस का प्रभाव बढ़ सकता है।
  • होलिका दहन से वातावरण शुद्ध होता है और हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
  • प्राकृतिक रंगों से खेलना त्वचा के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि यह हर्बल होते हैं और शरीर को ठंडक प्रदान करते हैं।

2. सामाजिक सौहार्द:

  • होली सभी भेदभाव को समाप्त कर एकता का संदेश देती है। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं।
  • यह त्योहार जाति, धर्म और समाज की बाधाओं को मिटाकर समानता की भावना विकसित करता है
  • होली के दौरान लोग मिलकर नृत्य, संगीत और पकवानों का आनंद लेते हैं, जिससे समाज में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।

होली के विशेष पकवान

होली का त्योहार रंगों और उल्लास के साथ-साथ स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है। इस दिन विभिन्न प्रकार के पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिनका आनंद परिवार और मित्रों के साथ लिया जाता है। आइए जानते हैं होली के कुछ खास पकवानों के बारे में—

1. गुजिया

गुजिया होली का सबसे प्रसिद्ध मीठा पकवान है। यह मैदे से बनी होती है और इसमें खोया, सूखे मेवे, नारियल और चीनी भरी जाती है। इसे घी में तलकर या बेक करके बनाया जाता है। इसे शक्कर की चाशनी में भी डुबोया जा सकता है।

2. ठंडाई

गर्मियों की शुरुआत के साथ ठंडाई का सेवन शरीर को ठंडक देता है। यह दूध, बादाम, काजू, सौंफ, गुलाब, इलायची और केसर से तैयार की जाती है। इसमें भांग मिलाने की परंपरा भी है, जो इसे एक अनोखा स्वाद देती है।

3. मालपुआ

मालपुआ एक प्रकार का मीठा पैनकेक होता है, जिसे मैदा, दूध और इलायची मिलाकर बनाया जाता है। इसे घी में तलकर चाशनी में डुबोया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है।

4. दही भल्ले

होली के स्वादिष्ट नमकीन पकवानों में दही भल्ले का विशेष स्थान है। यह उड़द या मूंग दाल से बने होते हैं और दही, इमली की चटनी, पुदीने की चटनी और मसालों के साथ परोसे जाते हैं। यह स्वाद में खट्टे-मीठे और मसालेदार होते हैं।

5. पापड़ और चिप्स

होली के अवसर पर घर में बने पापड़, चिप्स और चूड़ा का आनंद लिया जाता है। यह त्योहार के दौरान हल्के नाश्ते के रूप में पसंद किए जाते हैं।

6. कांजी वड़ा

यह एक पारंपरिक पेय है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में होली के समय तैयार किया जाता है। इसमें मूंग दाल के वड़े को सरसों और मसालेदार पानी में भिगोया जाता है, जिससे इसका स्वाद खट्टा और तीखा हो जाता है।

7. नमकीन मठरी

मठरी एक कुरकुरी और स्वादिष्ट नमकीन होती है, जिसे आटे और मसालों से तैयार किया जाता है। यह चाय या ठंडाई के साथ खाने में बेहद स्वादिष्ट लगती है।

8. शक्करपारे और नमकपारे

यह छोटे-छोटे मीठे और नमकीन स्नैक्स होते हैं, जिन्हें होली के दौरान बड़े चाव से खाया जाता है। ये लंबे समय तक ताजे रहते हैं, इसलिए लोग इन्हें त्योहार के बाद भी पसंद करते हैं।

होली न केवल रंगों और खुशियों का त्योहार है, बल्कि यह धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, भाईचारे और सामाजिक समानता का संदेश देता है। 2025 में, जब हम 13 और 14 मार्च को होली मनाएँगे, तो हमें इस पर्व की असली भावना को अपनाकर आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देना चाहिए।

होली कैसे मनाई जाती है?

होली भारत का एक प्रमुख पर्व है, जिसे पूरे देश में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। हर क्षेत्र में इसकी अलग-अलग परंपराएँ और विशेषताएँ हैं। कुछ प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं—

1. ब्रज की होली

मथुरा, वृंदावन, नंदगांव और बरसाना में होली का विशेष महत्व होता है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण और राधा से जुड़े होने के कारण पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं।

  • बरसाना की लट्ठमार होली में महिलाएँ पुरुषों पर लाठियाँ बरसाती हैं, और पुरुष खुद को बचाने का प्रयास करते हैं। यह होली बड़े उत्साह और परंपराओं के साथ खेली जाती है।
  • फूलों की होली वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में खेली जाती है, जहाँ श्रद्धालु फूलों से भगवान को अर्पण करते हैं और एक-दूसरे पर फूल बरसाते हैं।

2. शांतिनिकेतन की होली

पश्चिम बंगाल में रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांतिनिकेतन में बसंत उत्सव के रूप में होली मनाई जाती है।

  • यहाँ रंगों के साथ-साथ संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
  • छात्र पारंपरिक पीले वस्त्र पहनकर गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के गीत गाते हुए उत्सव में भाग लेते हैं।

3. राजस्थान की शाही होली

राजस्थान में होली को बहुत भव्यता से मनाया जाता है।

  • जयपुर और उदयपुर में राजमहलों में विशेष आयोजन होते हैं, जिनमें शाही परिवार के लोग भी भाग लेते हैं।
  • यहाँ घोड़ों और हाथियों की सवारी के साथ होली खेली जाती है, जो इसे शाही रंग देती है।

4. पंजाब की होला मोहल्ला

पंजाब में होली को होला मोहल्ला के रूप में मनाया जाता है, जिसे सिखों का अनूठा पर्व माना जाता है।

  • यह परंपरा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा शुरू की गई थी।
  • इस दिन निहंग सिख पारंपरिक युद्ध कला, घुड़सवारी और तलवारबाजी का प्रदर्शन करते हैं।
  • इसमें भांगड़ा और गिद्धा जैसे पारंपरिक नृत्य भी किए जाते हैं।

5. दोल जात्रा (पश्चिम बंगाल और ओडिशा)

पश्चिम बंगाल और ओडिशा में होली को दोल जात्रा के नाम से जाना जाता है।

  • इसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा की मूर्तियों को झूले पर रखा जाता है, और उनके भक्तगण रंग-गुलाल खेलते हैं।
  • इस दिन विशेष रूप से भजन-कीर्तन और शोभायात्राएँ आयोजित की जाती हैं।

होली पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाई जाती है, लेकिन इसका मूल संदेश प्रेम, उल्लास और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना है। चाहे ब्रज की रंगीन होली हो, पंजाब की जोश भरी होला मोहल्ला, या राजस्थान की शाही होली—हर स्थान पर इसकी अपनी अलग ही छटा होती है, जो इस पर्व को और भी विशेष बनाती है।

होली में ध्यान देने योग्य बातें

होली का त्योहार खुशियों, रंगों और भाईचारे का प्रतीक है, लेकिन इसे सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से मनाना भी जरूरी है। होली खेलते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए—

1. प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें

  • रासायनिक रंगों में हानिकारक केमिकल और धातु होते हैं, जो त्वचा, आंखों और बालों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • गुलाल, हल्दी, चंदन और फूलों से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें, जो त्वचा के लिए सुरक्षित होते हैं।
  • घर पर भी पालक, चुकंदर, टेसू के फूल और मेंहदी से हर्बल रंग बनाए जा सकते हैं।

2. पानी की बर्बादी से बचें

  • अधिक पानी की बर्बादी पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकती है, इसलिए सूखी होली खेलने की कोशिश करें।
  • बाल्टी के बजाय पिचकारी का इस्तेमाल करें, जिससे पानी की बचत हो सके।
  • जिन क्षेत्रों में पानी की कमी है, वहाँ संयमित रूप से होली खेलना चाहिए

3. सुरक्षित और सम्मानजनक होली खेलें

  • होली खेलते समय दूसरों की सहमति का ध्यान रखें।
  • जबरदस्ती रंग लगाना या किसी को असहज महसूस कराना गलत है।
  • बच्चों और बुजुर्गों के प्रति विशेष सावधानी बरतें, ताकि कोई अनहोनी न हो।
  • आँखों और मुंह में रंग डालने से बचें और होली के बाद त्वचा को अच्छे से साफ करें

4. शराब और नशे से बचें

  • होली के दिन कई जगहों पर शराब और नशीले पदार्थों का सेवन किया जाता है, जिससे दुर्घटनाएँ हो सकती हैं।
  • नशे की वजह से अनुचित व्यवहार या झगड़े हो सकते हैं, जिससे त्योहार का माहौल बिगड़ सकता है।
  • इस पावन पर्व को स्वस्थ और सकारात्मक तरीके से मनाना ही सही होगा।

5. जानवरों को रंगों से बचाएँ

  • होली खेलते समय जानवरों पर रंग न डालें, क्योंकि यह उनके लिए हानिकारक हो सकता है।
  • कई रंगों में केमिकल होते हैं, जो उनकी त्वचा और स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं

होली को सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल और सम्मानजनक तरीके से मनाना चाहिए, ताकि यह त्योहार सभी के लिए आनंददायक बना रहे। प्राकृतिक रंगों का उपयोग, पानी की बचत, सहमति का सम्मान और नशे से दूरी—ये सभी बातें ध्यान में रखकर होली को सही मायनों में प्रेम, उल्लास और भाईचारे का पर्व बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष

होली केवल रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक एकता और सौहार्द का प्रतीक है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है और हमें प्रेम, सद्भाव और भाईचारे का महत्व सिखाता है।

होली का त्योहार न केवल मथुरा-वृंदावन की लट्ठमार होली, राजस्थान की शाही होली, पंजाब के होला मोहल्ला जैसे विविध रूपों में मनाया जाता है, बल्कि यह हर्ष, उल्लास और आनंद का भी प्रतीक है।

इस पर्व पर हमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग, पानी की बचत, सुरक्षित होली खेलने और नशे से दूर रहने जैसे महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि सभी के लिए यह त्योहार सुखद और यादगार बन सके।

2025 में 14 मार्च को होली का यह रंगीन उत्सव पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाएगा।
आइए, हम भी इस पर्व को पूरे जोश और उमंग के साथ मनाएँ और इसे खुशियों से भरपूर, सौहार्दपूर्ण और यादगार बनाएँ!

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