सूखे खेतों में हरियाली ला देती है-village poem in hindi
saumyshree
बदलाव प्रकृति का नियम है और नियम के अनुसार कुछ भी किया जाए तो सब कुछ संतुलित रूप से सही सलामत पूरी हो जाती है जीवन के तीन चरण बचपन जवानी और बुढ़ापा इन तीनों चरण में से मैं एक चरण जी चुका था बस दूसरे चरण जिसका नाम जवानी है उसमें प्रवेश करने जा रहा था सारे दोस्त पेपर देकर अपने -अपने गांव जाने की तैयारी करते हैं मैं भी तैयार होता हूं उस वक्त जीवन के उतार-चढ़ाव का 1 दिन का भी तजुर्बा नहीं था मुझे वक्त गुजर रहा था वह भी बड़ी तेजी से मेरे फैमिली के सभी बड़े सदस्य ने हमेशा मुझे यही सिखाया कि तेज भागो और इस वक्त को अपनी मुट्ठी में कर लो पर मैं तो कुछ और ही करना चाहता था इस वक्त को पकड़ कर क्या करूंगा मैं तो इस वक्त को अपना दोस्त बनाना चाहता था इस वक्त के साथ चलना चाहता था इस जिंदगी को बखूबी जीना चाहता था और यही सोच अपने दिल में जगा मैं अपने गांव की तरफ निकलता हूं! जहाँ मेरे बाबा की मेहनत village poem in hindi से हम आपकी मुलाकात कराने वाले है !
घर से निकलता हूं बस पकड़ कर मैं अपने गांव पहुंचता हूं मैं पैदल गांव की तरफ बढ़ता हूं न जाने क्यों सारी चीजों को देखने का नजरिया ही बदल गया था लोग खेतों में काम कर रहे थे जिन बागों में कभी खेला करते थे वहां लोगों को अनाज़ साफ करते देखा, शाम हो चुकी थी कुछ लड़के अपनी गायों को और भैंसों को चारा- चरा कर घर वापस ले जा रहे थे गांव की गलियां शुरू होती है और कुछ घरों में चूल्हों पर गर्म हो मोटी -मोटी रोटियां पक रही थी डूबता वो सूरज भी थक कर सोने की तैयारी में था खामोश लहलहाती खेतो कि वह फसलें शाम को ठंडी चलती हवाओं से सरसराती हुई ठंडक का अनुभव कर रही थी पक चुकी थी फसलें चलते चलते घर पहुंचता हूं मेरी इन बातो को वही महसूस कर सकता है जो इस तरह की शाम को जिया हो, मैं पुरे यकी से कह सकता हु गाँव की वो शाम जितना सुकून देती थी उस तरह की सुकून की कितनी भी कीमत चूका लो वैसी शाम और वो सुकून कही नहीं मिल सकता खैर मैं घर पहुँचता हु और घर पर कोई नहीं होता है!
मैं खेत की तरफ जाता हूं,कुछ दूर चलते ही थक जाता हूं पर मेरे पैर जितना चल नहीं रहे थे उससे कहीं ज्यादा दूर मेरी निगाहें देखने की कोशिश कर रही थी मैं चलता रहता हूं रास्ते में कुछ लोग खेतों में काम करके लौटते हुए नजर आ रहे थे मैं आगे बढ़ता हूं खेत आता है, और बाबा को खोजता हूं पर वह दिखाई नहीं देते इधर-उधर देखने के बाद वह नीम के पेड़ के नीचे बैठे नजर आते हैं, बहुत थके हुए नजर आ रहे थे मैं पैर छूता हूं कैसे हो बाबा अकेले आए हो ? बाबा पूछते हैं, बाबा चलो घर मैं कहता हूं हम रास्ते में चलते वक़्त बाते करते है, चलते राहों में मैं यही सोच रहा था, “बंद कमरे में शहर की जगमगाती लाइट और टीवी के सामने बैठ जिस रोटी को मैं बड़े चाव से खाता हूं,उस रोटी को बनाने में पैदा किए गए गेहूं की उपज करने में मेरे बाबा कितना संघर्ष करते हैं”
“हर रोज मेरी आंखों की चार बूंद आंसू रोकने के लिए कि मैं भूख से रोऊ ना,
मेरे बाबा इन खेतो में हर रोज़ 400 बूंद पसीना बहाते हैं”
खेत की मेड पर चलते हुआ मेरे पैर बार-बार फिसल रहे थे उस वक्त एहसास हुआ कि हमारे जीवन के रास्ते आसान नहीं होंगे वह बहुत फिसलन भरे हैं यह हम पर निर्भर करता है, कि हम उस पर कैसे चलते हैं मालूम हुआ कि जिंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है:-