एक गाँव में मुकुंद नाम का एक व्यक्ति रहता था ! वह एक महान संत का शिष्य था ! संत चाहते थे की उनका शिष्य उनके पास रह कर ज्ञान अर्जित करे परन्तु शिष्य हमेशा यही कहता की मेरा परिवार मेरे बिना कैसे रहेगा उनकी रोजमर्रा की जरूरते कैसी पूरी होगी वो समाज में अपना जीवन, आखिर मेरे बिना कैसे निर्वाह करेंगे ! संत कहते है, की तुम्हारा परिवार तुम्हारे बिना रह नहीं सकता ये तुम्हारा वहम है ! संत बोलते है की क्यों ना तुम अपने परिवार की परीक्षा लो और पता करो की तुम्हारा परिवार तुम्हारे बिना रह सकता है या नहीं !
संत ने अपने शिष्य को परीक्षा लेने की एक योजना बताई ! संत ने उसको प्राणायाम योगा के द्वारा अधिक समय तक साँस को रोकना सीखा दिया ! अब मुकुंददास ने योजना के अनुसार अपने परिवार के साथ नदी में नहाने के लिए गया ! और जैसे ही नदी में डुबकी लगाई ! वह अपनी साँस रोककर पानी के अंदर ही रहकर नदी की बहाव में बहुत दूर निकल आया और नदी से बाहर निकल कर संत के पास पहुंच गया !
इधर परिवार वालों ने बड़ी देर तक नदी में मुकुंद की खोज करते रहे ! उन्होंने पास के गाँव के गोताखोरों को भी बुला कर नदी में बड़ी देर तक खोज की पर मुकुंद के ना मिलने पर परिवार वालों ने मान लिया की उसकी मौत हो गयी है !
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संत के आश्रम तक जब ये बात पहुंची तो सभी बड़े हैरान हुए और मुकुंद की मौत पर शोक जताते हुए ये तय किया की उसके परिवार वाले बड़ी समस्या में होंगे तो जरुरी सामान जो भी है उनके घर पंहुचा दिया जाये और हर महीने का खर्चा भी बँधा दिया जायें ! संत को बिना जानकारी दिए ही सभी शिष्य मिलकर मुकुंद के घर ढेर सारा सामान पहुँचा दिया और महीने का खर्चा भी बँधा दिया !
कुछ दिनों के बाद मुकुंद की पत्नी आश्रम आई ! संत ने मुकुंद की पत्नी को बैठने के लिए बोला और घर का हॉल चाल पूछा !
मुकुंद की पत्नी ने बोला की ” वो तो इस दुनिया में रहे नहीं उनको तो वापस लाया नहीं जा सकता ! परन्तु उनके जाने के बाद हमारा जीवन पहले के अपेछा बहुत अच्छा कट रहा है !
संत थोड़ा हैरान हुए और बोले पहले से और अच्छा कैसे हुआ जीवन ?
मुकुंद की पत्नी ने जवाब दिया की आपके ही आश्रम के कई शिष्य घर के जरुरी सामान महीने -महीने पहुंचा देते है , इसलिए पहले से तो जीवन बहुत ही बेहतर चल रहा है !
मुकुंद छिपकर ये सारी बातें सुन रहा था ! पत्नी के जाने के बाद संत ने मुकुंद से घर वापस जाने के लिए बोलते है, और कहते है की अब तो तुम्हे समझ आ ही गया होगा की मैं तुझे क्या समझा रहा था !
मुकुंद अपने घर लौटता है , पूरा परिवार अचानक से मुकुंद को सामने देख डर जाते है ! यह देख मुकुंद पूरी घटना विस्तार से समझाता है !
कहानी का सार :-
इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है, की इंसान को अपने जीवन में “मै ” और “मेरा” की भावना कभी नहीं रखनी चाहिए ! “मै ” और “मेरा” की भावना से जीवन में अहंकार पैदा होता है ! अगर हमारे द्वारा किसी भी सहायता हो पा रही है, तो इसका अहंकार नहीं होना चाहिए इसके बदले हमें परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिए की उन्होंने हमें इस काबिल बनाया की हम किसी की मदद कर सके !
By :- Vivek Singh