वैसे तो न जाने कितने शहरों में कदम रखा था मैं लेकिन जब पहली दफा जयपुर शहर में कदम रखा तो ऐसा लगा मानो पिछले जनम के बिछड़े इस जनम में मुलाकात हो रही हो, मेरी इस शहर से बात हो रही हो, हल्की सी मुस्कान मेरे चेहरे पे थी और ये शहर भी मुझे देख मुस्कुरा रहा था, ना जाने कितनी बार इस शहर में बिन आये हुए आया था मैं, ख्यालो में ही सही कई बार बात भी हुई थी। तेज़ रफ़्तार से भागता ये शहर मेरे आते ही जैसे रुक सा गया हो, हर इंसान अपनी जिंदगी का हीरो होता है, और उसे लगता है कि ये शहर और शहर के लोगो का ध्यान उसी पे है, ऐसा अक्सर तब लगता है जब हम किसी बड़ी मंजिल की तलाश में निकले हो, ये शहर भी थमा-थमा सा था एक हीरो के स्वागत में, राहो में चलते वक़्त ये शहर भी ढेर सारी बाते करना चाह रहा था , पर लंबी दूरी की मुलाकात भी अजीब होती है जो अपना होता है उसे भी अजनबी बना देती है, कैब से घर पहुँचने तक के सफर में, मैं भी खामोश था, और ये शहर भी !
दूसरी सुबह हुई और मुझे अपनी जिंदगी को बेहतर करने और अपने मकसद को पूरा करने के लिए एक ऑफिस में इंटरव्यू के लिए जाना था, ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव का एक दिन का भी अनुभव नही था मुझे, घर जिसे हमने रेंट पे लिया था उसके पास वाली जगह जो दिल्ली हाईवे के पास थी ! किसी ने कहा वहाँ से बस मिलेगी राम बाग के लिए, और रामबाग से बस मिलेगी कैलगरी रोड के लिए, मै बस में बैठा खिड़कियों से बाहर पूरे शहर को बहुत हैरानी से देख रहा था, मैं जयपुर शहर को अपने करीब महसूस कर रहा था, रामबाग आने वाला है ये जानने के लिए कई और लोगो से पूछ रहा था कि रामबाग आते ही बता देना, रामबाग उतरा और वहाँ से बस में बैठा कैलगरी रोड के लिए, बस से उतरते ही ऑटो वाले ने पूछा कहा जायोगे ,मैं बोला गौरव टॉवर, मैं बैठ गया , 200 कदम भी नही चला था ऑटो की पुलिया पार उतारते ही ऑटो वाले ने बोला लो जी आ गया गौरव टॉवर, उसने 200 रुपये बोले, मैं 200 रुपये दे दिया ! 5TH फ्लोर पे गोदरेज होम अप्लाइन्से का आफिस था, लगभग 1 घंटे इंतज़ार के बाद मेरा नंबर आया, इंटरव्यू देते ही उन्होंने बोला कल से जॉइन कर लो।
अब मुझे घर लौटना था, और जहाँ से आते वक्त मैंने बस पकड़ी थी उस जगह का नाम ही नही पता था, छोटे शहर की अपनी ही खूबसूरती होती है, बड़े शहर जितने ये छोटे शहर वाले होशियार नही होते, लेकिन ये छोटे शहर वाले भले ही होशियार ना हो पर ये कभी कुछ भूलते नहीं , चाहे वो किसी से किया हुआ वादा हो या कोई रिश्ता ईमानदारी से निभाना हो हम कभी नहीं भूलते तो रास्ता कैसे भूल जाते उन दिनों मेरे पास मोबाइल भी नही था बस पता था तो इतना दिल्ली हाईवे के पास वाला बस स्टाफ है, वहाँ से रामबाग आया औऱ जिस तरफ से रामबाग आते वक्त बस आयी थी उस तरफ जाकर खड़ा हो गया। जैसे तैसे में वैशाली नगर के आम्रपाली सर्किल पहुच गया , मुझे दिशा भरम हो गया कि किस दिशा में जाऊ, मैं थक कर थोड़ी देर बैठ गया, किसी से पूछ कर दिल्ली हाईवे की तरफ पैदल ही चल पड़ा ।
“जब हम किसी से बेपनाह मोहब्बत करते है, तो उसमें किसी तरह का कोई सवाल और ज़वाब नही होता”
जयपुर शहर में आने की खुशी और ये मोहब्बत इस कदर थी कि ना मैं ऑटो पकड़ते वक़्त कितने पैसे लोगो पूछा , और ना ही इंटरव्यू लेने वाले से क्या काम करना है उसकी पूरी जानकारी ली ,बस उसने कहा ये बेचना है , मैं सब चीजों का जवाब हा में दिए जा रहा था और ना उस इंसान से पूछा कि दिल्ली हाईवे कितनी दूर है बस उसने दिशा बताई और चल पड़ा ,
“जयपुर शहर से मोहब्बत ही कुछ इस कदर हुई थी, उस दिन इंटरव्यू लेने वाला शक़्स कितने ही काम करने को बता देता, तो मैं बिना सवाल किए हाँ बोल देता”
Hindi poem on Jaipur
मुझे इस शहर से प्यार हो गया है !
बड़ा डरा डरा सा सहमा सा रहता था, ये
मेरी तरह जीवन की तकलीफे सहता था, ये
अपना जैसा देख मुझे अपनी दस्ता सुनाने लगा
जी भर के खुद रोया और मुझको रुलाने लगा !
राहों पे हुए गड्ढे जख्म है बताने लगा,
मेरी मीठी बातो से उन जख्मों को सहलाने लगा !
कहता दिन की चमकती धूप में सब दौड़े चले आते हैं !
रात के सन्नाटे में तन्हा छोड़ सब अपने घर सो जाते हैं !
तन्हा हूं ए दोस्त मुझसे कोई बात नहीं करता,
इस अकेली जिंदगी में कोई मेरे साथ नहीं रहता !
मैंने कहा ए दोस्त मैं तेरा साथ निभाऊंगा,
इस अकेली जिंदगी में तुझे कभी छोड़कर ना जाऊंगा !
हुई जो दोस्ती कहता साथ है निभाना,
पल भर के लिए मुझे कभी छोड़कर ना जाना !
चंद मुलाकातों में यह मुझे क्या हो गया है,
देखते ही देखते यह मेरा यार हो गया है !
सच पूछो, मुझे इस शहर से प्यार हो गया है !
By Vivek Singh