मुझे सही ढंग से याद तो नहीं है, कि यह बात किस सन की है, बस पता है, तो इतना कि शायद यह बात जुलाई माह की रही होगी। मेरे पिताजी घर से निकले थे, पास के एक स्कूल में मेरा एडमिशन कराने के लिए, यह बात मै पूरे यकीन से तो नहीं कह सकता हू, क्योंकि यह घटना जब घट रही थी तो मैं महज 4 साल का था, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि कुछ ऐसा ही हुआ होगा। उस दिन जब मेरे पिताजी स्कूल पहुंचे तो उसी वक्त मेरे बड़े पिताजी के दोस्त श्री लक्ष्मी प्रसाद यादव जी भी स्कूल के ऑफिस में मौजूद थे ! जो अपने भी बच्चे का एडमिशन कराने के लिए वहां पहुंचे थे , यह वही बच्चा था, जो मेरी जिंदगी का सबसे पहला दोस्त बनने वाला था। हम दोनों के पिता जी एक दूसरे को पहले से ही जानते थे ! शायद इसलिए एडमिशन फॉर्म भरते वक्त दोनों एक साथ ही बैठे रहे होंगे, और फॉर्म भरते वक्त ना जाने ऐसा क्या हुआ होगा कि दोनों के पिता जी हम दोनों का डेट ऑफ बर्थ 26 जनवरी 1990 लिखवा दिए ! वैसे तो मेरा जन्म 23 जनवरी को हुआ था, और मेरे दोस्त का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था ! पर दोनों की डेट ऑफ बर्थ एक लिखाने की वजह क्या रही होगी ? आज मैं इस बारे में लिख रहा हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि पहले के समय में लोग डेट ऑफ बर्थ पर इतना गौर नहीं करते थे और उन दिनों डेट ऑफ बर्थ का कोई डिजिटल डाटा भी मेंटेन नहीं होता था तो दोनों के पिताजी ने आपस में बात करके यह सोचा होगा कि 26 जनवरी डेट ऑफ बर्थ रखते हैं जिससे डेट ऑफ बर्थ याद रखने में परेशानी नहीं होगी। और उस दिन का लिया हुआ वह फैसला हमारी जिंदगी की डेट ऑफ बर्थ को तो एक किया ही साथ में दो दोस्त जो अभी तक एक दूसरे से मिले भी नहीं थे, उनकी बिन मिले मुलाकात भी करा दी थी।
कभी-कभी हमारी जिंदगी के कुछ छोटे-छोटे फैसले हमारे साथ ता उम्र जीते रहते हैं, यह फैसले यू तो आसानी से पल-भर में ले लिए जाते हैं, परंतु उस फैसले का जुड़ाव हमारी जिंदगी से हमेशा जुड़ा रहता है।
एडमिशन एक साथ हुआ था, इसलिए हम दोनों का रोल नंबर भी एक साथ आता था। हालांकि हमारे नाम के अल्फाबेट अलग-अलग थे फिर भी ना जाने ऐसा क्यों होता था । शायद यह दोस्ती विधाता द्वारा निर्धारित की गई थी और मेरे उस दोस्त का नाम विधाता के नाम पर ही है! वैसे तो ज्यादातर लोगों के 2 नाम होते हैं, एक स्कूल का नाम और एक घर का नाम पर उसका एक ही नाम है हनुमान ! और आज हम अपने जीवन के hanuman ji ki kahani सुनाएँगे !
हनुमान मेरी जिंदगी का पहला दोस्त रहा है, और यह बात मेरे लिए हमेशा खास रहेगी ! और हमेशा मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे ऐसा दोस्त मिला जैसा उसका नाम है, वैसा ही वह कई योग्यताओं से परिपक्या था! सही मायने में कह सकते हैं कि वह सर्वगुण संपन्न व्यक्ति है बोलने-चालने में, शिक्षा में और सही गलत को समझने की काबिलियत मुझ से कहीं ज्यादा बेहतर उस में रही थी। और यही वजह थी कि वह सभी का चहेता रहा था, स्कूल टाइम में चाहे स्कूल के बच्चे हो या टीचर्स सब उसे बहुत मानते थे ! वैसे तो स्कूल से घर बहुत पास था उसका, लेकिन अक्सर वो स्कूल लेट आया करता था, पर जब तक वह क्लास में नहीं आता मेरा मन ही नहीं लगता था। देखते ही देखते हम बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे ! मैं हमेशा से पढ़ाई में थोड़ा एवरेज विद्यार्थी रहा था ! लेकिन मेरे दोस्त ने हमेशा मेरी मदद की! रोल नंबर एक साथ होने के कारण पेपर देते वक्त उसका रोल नंबर हमेशा मेरे नंबर के पीछे आता था ! स्कूल में नकल ना होने के लिए टीचर द्वारा कड़ी निगरानी का प्रबंध हमेशा रखा जाता था, पर मेरा दोस्त हमेशा पेपर में जिन सवालों का जवाब मुझे नहीं आता उसमें मेरी मदद करता था ! अक्सर लोगों को देखता था, कि लोग कितने भी अच्छे दोस्त क्यों ना हो लेकिन जब पेपर के समय की बात आती थी, तो वह दोस्ती को पूरी तरह से भूल जाते थे ! और किन-किन चीजों की तैयारी कर रहे हैं, उसके बारे में किसी को नहीं बताते थे ! पर मेरा यह दोस्त खुद जो पढ़ता था, वह मुझे भी बताता कि इन- इन ट्रॉपिक की पढ़ाई जरूर से कर लेना मुझे आज भी याद है, उसके वह शब्द कि विवेक इन- इन टॉपिक को अच्छे से याद कर लेना और तो मैं साथ रहूंगा ही, और यह साथ उसने कभी नहीं छोड़ा। कई बार हम दोनों को पेपर देने के दौरान आपस में बात करने के कारण मार भी पड़ी पर उसने अपना साथ कभी नहीं छोड़ा।
नर्सरी क्लास से 9th क्लास तक हम साथ थे, चाहे खेलना- कूदना हो या क्लासरूम में बैठना हो, चाहे बिन मक़सद घंटो कहीं घूमने जाना हो और चाहे स्कूल का कोई पेपर हो हम हमेशा साथ थे।
मुझे आज भी याद है वह दिन, जब दसवीं क्लास के बोर्ड एग्जाम हो रहे थे! यह वही साल था, जब स्कूल के नियम में कुछ बदलाव हुए थे , की बोर्ड एग्जाम सेल्फ सेंटर में ही होंगे , हम खुश थे, कि हमे एग्जाम देने कही दूर नही जाना पड़ेगा ! और हम अपने ही स्कूल में ये एग्जाम देंगे। टीचर को इस बार स्कूल के रोल नंबर के अकॉर्डिंग बच्चों को क्लासरूम में नहीं बैठना था, बल्कि इस बार बोर्ड एग्जाम में अल्फाबेट के अकॉर्डिंग रोल नंबर सेट थे ! और इस अल्फाबेट के द्वारा बने रोल नंबर ने हम दोनों के पेपर में एक साथ बैठने वाली दोस्ती का अंत कर दिया था।
मेरा रोल नंबर जिस क्लासरूम में था, वह ग्राउंड फ्लोर पर था! और हनुमान का जो रोल नंबर था, वह क्लासरूम फर्स्ट फ्लोर पर था । उस दिन मैथ का पेपर था, और मेरे दोस्त को पता था, कि मेरी मैथ कमजोर है, उन दिनों पेपर में शुरु के पांच क्वेश्चन (Question) ऑप्शनल टाइप के आते थे, मेरे उस दोस्त ने वॉशरूम के बहाने ग्राउंड फ्लोर पर आकर इशारों से मेरे वह ऑप्शनल नंबर के क्वेश्चन (Question) सॉल्व कराये। यह जानते हुए कि बोर्ड पेपर है, और सख्ती ज्यादा है, अगर उसने कोई ऐसी वैसी हरकत की तो वह पकड़ा भी जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद उसने मेरी मदद की ।
“मेरा मान है, मेरी शान है, तू मेरा अभिमान है,
वैसे तो मैं राम नहीं, पर तू मेरा हनुमान है”
मेरे भगवान जैसे दोस्त को दसवीं पास करने के बाद मैं खोया तो नहीं पर हमारे रास्ते अलग- अलग हो गए ! उसने अपनी योग्यता अनुसार दूसरा सब्जेक्ट लिया और मै दूसरा सब्जेक्ट ले लिया हम अलग हो गए। अलग- अलग क्लास में बैठ गए, हमारे अलग-अलग दोस्त बनने लग गए। मैं आज भी सोचता हूं क्या उस रोल नंबर में इतनी ताकत थी कि हम दोनों को इतना दूर कर दिया।
जीवन के इस कालचक्र में हम आगे बढ़ते रहे हमारे रास्ते अलग हुए, पर हमारी दोस्ती बरकरार रही हम दूर होकर के भी बहुत करीब है ।
आज इस बात को 19 साल होने को आए हैं, और आज मैं इस बात का जिक्र क्यों कर रहा हूं, मेरे इस दोस्त ने बचपन से हर जगह मेरी मदद की, मेरा साथ दिया पर जब मेरी बारी आई कुछ करने के लिए तो मैं उसके लिए खड़ा नहीं हो पाया। मेरे दोस्त को एक बार किसी कारण बस बिजनेस के लिए पैसों की जरूरत पड़ी और उसने निसंकोच मुझसे पैसे के लिए डिमांड किया पर मैं मदद ही नहीं कर पाया क्योंकि मैं बाहर शहर में कमा कर अपना गुजारा कर रहा था ! उस वक्त मेरी सैलरी इतनी कम थी कि महीने का खर्चा ही बड़ी मुश्किल से चला पाता था, तो पैसे कैसे बचाता। मुझे आज भी मलाल रहता है कि मैं अपने उस दोस्त की मदद नहीं कर पाया जो दोस्त मेरे लिए हमेशा हर हालात में खड़ा रहता है ।
आज भी हम साल- साल भर बात नहीं करते पर इससे हमारे रिश्ते में खटास नहीं आती! आज भी हम साल भर पर मिले या फोन पर बात करें तो लगता ही नहीं बहुत दिन बाद बात हो रही है, ऐसा लगता है, हम दूर होकर भी करीब ही हैं । पर जब भी मेरी आमने-सामने मुलाकात होती है, तो मैं उससे उस दिन के लिए माफी मांगना चाहता हूं। कि मेरे दोस्त मुझे माफ कर देना, मैं उस दिन तुम्हारी मदद नहीं कर पाया। पर यह मदद ना कर पाने की शर्मिंदगी इतनी है, कि मैं उससे कभी कहीं नहीं पाता कि ” ऐ दोस्त मुझे माफ कर देना”।
hanuman ji ki kahani
By:- Vivek Singh