अंतरात्मा की नज़र- prerak kahani

बात उस समय की है, जब भारत में गुरुकुल के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी ! गुरुकुल शिक्षा का एक ऐसा केंद्र था जहाँ हर वर्ग के विद्यार्थी पच्चीस वर्ष तक शिक्षा ग्रहण करते थे ! गुरुकुल के शिक्षा प्रणाली में एक बहुत ही महान पंडित राधे गुप्त थे जिनकी शिक्षा देने की व्यवस्था इस तरह थी की दूर-दूर राज्य के विद्यार्थी उनसे शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे ! गुरुकुल के इस महान पंडित को एक चिंता सताये जा रही थी ! क्योंकि पत्नी की अचानक मृत्यु ने उनके घर का माहौल शोक में बदल दिया था, जिसके कारण वो अपनी विवाह योग्य बेटी के विवाह हेतु चिंतित रहने लगे ! पंडित जी का चिंतित होना भी लाजमी था , क्योंकि समय के साथ-साथ पंडित जी की भी उम्र ढल रही थी ! पंडित राधे गुप्त अपनी बेटी के लिए एक ऐसा वर खोज रहे थे, जो भले ही धन सम्पति से कमजोर हो परन्तु वह कर्मठ व्यक्ति हो ! जो जीवन में आने वाली हर समस्या से लड़ सके, और उनकी बेटी का ध्यान रख सके, और हर परिस्थिति से लड़ते वक़्त वह सही निर्णय ले सके !

अंतरात्मा की नज़र- prerak kahani
अंतरात्मा की नज़र- prerak kahani

 

पंडित जी को चिंतित देख उनके सहकर्मी ने उनके चिंतित रहने का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बतायी ! उनके सहकर्मी ने उन्हें एक रास्ता बताया की क्यों ना आप अपने शिष्यों में से ही किसी बेहतर और योग्य शिष्य से अपनी बेटी का विवाह सम्पन करवा दे ! पंडित जी को अपने सहकर्मी द्वारा दी गयी सलाह अच्छी लगी और उन्होंने यह तय किया की वो अपने ही शिष्यों में एक प्रतियोगिता रखेंगे और उनमें से जो सबसे बेहतर होगा वही मेरी बेटी के लिए योग्य वर होगा !

अंतरात्मा की नज़र- prerak kahani

पंडित राधे गुप्त ने बिना देरी किये ही दूसरे दिन परीक्षा को आयोजित किया ! सभी शिष्य एक जगह उपस्थित हुये ! पंडित जी ने सभी को कहा की मुझे मेरी बेटी का विवाह करना है, जिसके लिए मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है अतः आप सभी को करना यह है, की विवाह से सम्बन्धी वस्तुओं को कैसे भी एकत्र करना है, चाहे इसके लिए आपको किसी के भी घर में चोरी करनी पड़े ! लेकिन शर्त यह है की चोरी करते वक़्त आपको कोई भी देखने नहीं पाये !

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पंडित जी की इस परीक्षा में सभी शिष्य भाग लेने लगे ! सभी शिष्य अलग-अलग जगह से विवाह हेतु सामान चोरी करके पंडित जी को ला कर देना शुरू कर दिए ! पंडित जी का मकसद अपने शिष्यों से चोरी कराने का बिलकुल भी नहीं था इसलिए पंडित जी ने सभी सामान की ब्यौरा लिखना शुरू कर दिया ताकि चुरा कर लायी हुयी सामग्री को जहाँ से चुरा कर लाया गया है उन्हें वापस किया जा सके ! और शिष्यों को इस चोरी के माध्यम से सही ज्ञान दिया जा सके !

पंडित जी के द्वारा चुने गए शिष्य अपने -अपने मस्तिष्क के अनुसार सबसे बेहतर करने की कोशिश कर रहे थे ! पर उन्होंने देखा की उनके शिष्यों में एक शिष्य कोई भी कार्य नहीं कर रहा है, और वह शांति से एक स्थान पर बैठा हुआ है ! उस शिष्य का नाम रामास्वामी था ! जो की गुरुकुल का एक होनहार शिष्य था ! रामास्वामी को इस तरह बैठा देख पंडित जी से रहा नहीं गया और वो तुरंत रामास्वामी के पास गए और परीक्षा में भाग ना लेने का कारण पूछा ! रामास्वामी जी पंडित जी की तरफ देखते हुए बोले, “गुरु जी आपने परीक्षा रखी थी, की विवाह का सामान एकत्र करना है, और विकल्प के तौर पे आपने कहा था, की चाहे तो इसके लिए सभी लोग चोरी भी कर सकते है, बस शर्त यह है, की आपको चोरी करते वक़्त कोई देखने ना पाए ! लेकिन गुरु जी विवाह का सामान बिना चोरी किये भी एकत्र किया जा सकता था ! और अगर चोरी करके भी विवाह का सामान एकत्र कर रहे है तो इसमें चोरी करते वक़्त कोई देखने ना पाए आपकी इस शर्त का तो पालन ही नहीं हो पा रहा है ! अगर हम अकेले में भी चोरी करते है, तो हमारी खुद की अंतरात्मा तो हमें देख ही रही होती है , हम किसी की नज़र से बच कर चोरी तो कर पा रहे है ,परन्तु खुद की अंतरात्मा की नजरों से नहीं बच सकते है ! रामास्वामी की यह बाते सुनकर पंडित जी बहुत ही खुश होते है ! और उसी वक़्त सभी शिष्यों को एक जगह एकत्र होने के लिए बोलते है ! पंडित जी सभी शिष्यों से पूछते है, की क्या चोरी करते वक़्त किसी ने भी आपको देखा है ? सभी शिष्य एक स्वर में बोलते है, नहीं ! “गुरु जी, “हमें चोरी करते वक़्त किसी ने भी नहीं देखा है ! पंडित जी सभी शिष्यों से पूछते है, की क्या आप इस चोरी को अपने अंतरात्मा से छुपा पाये हो ? सभी शिष्य ख़ामोशी से नजरे झुका लेते है , और उन्हें बात समझ आ जाती है !

पंडित राधे गुप्त इस परीक्षा को रखने का कारण सभी के सामने रखते है, की इस परीक्षा के माध्यम से मैं अपनी बेटी के लिए एक उत्तम वर खोज रहा था, और परीक्षा में रामास्वामी के पास होने की बात सभी को बताते है और कहते है की मैं अपनी पुत्री का विवाह रामास्वामी से करवाने का प्रस्ताव रामास्वामी के परिवार में भेजवाता हू ! और सभी शिष्य चुराई हुई वस्तुओ को जिनके यहाँ से भी लाये है, उन्हें वापस करें ! और उनसे झमा माँग कर आये !

अंतरात्मा की नज़र- prerak kahani

कहानी का सार :-

हम अपने जीवन में जो भी कार्य कर रहे है, वो कितना सही या कितना गलत है, हम सभी से छुपा सकते है, परन्तु हम अपनी अंतरात्मा से कभी भी नहीं छुपा सकते , इसलिए जब भी कोई कार्य करे तो अपनी अंतरात्मा को जरूर टटोल ले की यह कार्य सही है या नहीं !

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