एक गाँव में एक बहुत ही धनी सेठ रहा करता था जिसका नाम धनदत्त था ! एक दिन गाँव में भीख मांगते मांगते भिखारी उस सेठ के घर पहुंच गया , घर के बाहर खड़ा होकर भिखारी ने अन्य मांगने के लिए आवाज़ लगायी ! सेठ उस भिखारी को एक मुटठी अन्य देने लगा, भिखारी मुटठी भर अन्य लेने से मना कर दिया ! सेठ गुस्से में आकर बोला की अन्य नहीं लेगा तो क्या अब मनुष्य लेगा !
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भिखारी को सेठ की ये बात बहुत बुरी लगी और सेठ की ओर देखते हुए बोला की हां अब मैं मनुष्य ही लूंगा ! जब तक तुम मुझे मनुष्य नहीं दोगे मैं इसी तरह तुम्हारे दरवाजे पे ही बैठा रहूँगा !
यह बोल कर भिखारी अन्य -जल सब त्याग कर सेठ के दरवाजे पे बैठ गया ! सेठ यह देख कर बहुत परेसान हुआ और भिखारी को ज्यादा धन और अन्य देना चाहा ताकि भिखारी द्वार से चला जाये , किंतु भिखारी अपनी जिद पर अड़ा रहा ! भिखारी की हट को देख सेठ बहुत ही चिंतित हो उठा !
उसने सोचा की इस समस्या का समाधान तो निकालना ही पड़ेगा ! दूसरे दिन सेठ राजा के दरबारियों से मिला और सारी बात बतायी , दरबारियों ने कहा की भिखारी है कितने दिन बैठेगा भूख प्यास से एक दिन मर जायेगा , मरने दो भिखारी को !
सेठ दरबारियों से मिलकर लौट आया पर सेठ की चिंता खत्म नहीं हुई ! सेठ सोचने लगा की अगर सचमुच में ये भिखारी मर गया तो क्या ये दरबारी मेरा साथ देंगे !
फिर सेठ शहर के कोतवाल के पास जाता है और बोलता है की मेरे घर के बाहर एक भिखारी बैठा था जिसकी मौत हो गयी है , कोतवाल यह सुनते ही चौक जाता है कोतवाल ने कहा सेठ जी ये तो बहुत बुरा हुआ है आपके घर के बाहर किसी की मौत हुई है अब तो जाँच होगी और अगर आप दोषी पाए गए तो आपको उचित दंड भी दिया जायेगा !
सेठ ये सुनते ही चुप चाप घर लौट आया और सारी रात गंभीरता से विचार किया की वो इस समस्या से बाहर कैसे निकले ! सारी रात सोचने समझने के बाद वो सुबह होते ही भिखारी के पास जाता है और कहता है की तुम्हारी यही जिद है ना की तुम्हे मनुष्य ही लेना है ? तो ठीक है मुझे ही ले चलो !
भिखारी उठ खड़ा हुआ और सेठ की तरफ देखते हुए बोला “आप श्रेष्ठ है , मैं अपनी बात सत्य करने पे अड़ा था जिस समय आपको उसका बोध हो गया उसी समय मेरी मांग पूरी हो गयी ! और भिखारी वहां से चला गया ! सेठ को दान के अहंकार से होने वाले नुकसान का ज्ञान हुआ !
कहानी का सार :-
अगर आप किसी को कुछ देने योग्य हो तो प्रभु की आप पर असीम कृपा है , की आप इस योग्य हो ! किसी को कुछ दान देने पर आपको अपने अंदर अहंकार नहीं आने देना चाहिए बल्कि सेवा की भावना से दान करना चाहिए !