एक नगर में एक बहुत ही धनी सेठ रहता था वो अपने घर में बहुत अधिक धन संपदा एकत्र कर रखा था ! पर इतना अधिक धन संपदा के बाद भी वह बहुत ही कंजूस था वह यह धन कमाते -कमाते बूढ़ा भले ही हो गया हो परन्तु उसकी धन एकत्र करने की लालसा कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी ! सब कुछ ठीक चल रहा था और एक दिन उसके भवन में भीषड़ आग लग गई वह भवन से बाहर आकर तेज तेज आवाज़ में चिल्ला रहा था और आंसू बहा रहा था वह सेठ अपने ही सामने अपनी धन संपदा को जलता हुआ देख समझ ही नहीं पा रहा था की क्या करे रोते हुये स्वर में वो लोगो को आग बुझाने के लिए बुला रहा था नगरवासी वहा पर एकत्र हो गए और उसमें से कुछ भवन के अंदर जाकर सेठ का धन बाहर लाने की कोशिश कर रहे थे !
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नगरवासी जलते हुए भवन के अंदर जाकर सेठ का ज्यादा तर सामान बाहर निकाल लाये, सामान को बाहर लाने वाले लोग सेठ से बार -बार पूछ भी रहे थे की सेठ जी और कहां -कहां सामान रखा हुआ है आप बता दीजिये अब बस आखरी बार ही भवन के भीतर जाया जा सकता है क्योंकि आग और भी भीषड़ रूप ले रही है ! सेठ रोते -रोते बोलने लगा की मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा है तुम लोगों को जो कुछ भी बचा कुचा दिखायी दे सब बाहर निकाल लाओ ! सामान निकालने वाले लोग भवन के हर कमरे से सामान निकाल कर वापस ही लौट रहे थे की उनकी नज़र भवन के आखरी कमरे में पड़ी , जब वो वहां पहुंचे तो देखा की सेठ का पुत्र जो इकलौता पुत्र था वह वहां पर मरा हुआ पड़ा हुआ है ! समान निकालने वाले व्यक्ति बोलने लगे की सेठ ने बार -बार समान निकालने की ही रट लगा रखी थी उसने हमें एक बार भी नहीं कहां की मेरा बेटा भी अंदर ही है ! हम सभी तो सेठ का समान ही बचाने में लगे रहे ! सेठ जी का सारा समान तो बचा लिया गया लेकिन उनका इकलौता जो आगे चलकर उनके सामान का एकलौता बारिश ही चला गया ! आज पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है हम सभी अपना-अपना सामान बचाने में लगे हैं लोग अपने जीवन को जीने का मकसद ही भूल चुके है !
कहानी का सार :-
जीवन में पैसा कमाना जरुरी है पर इतना भी नहीं की उसे कमाते-कमाते आप अपनों को ही भूल जाओ !