बैंकर्ट रिपेयर सर्जरी (Bankart Repair Surgery) : प्रक्रिया, लाभ और पुनर्वास योजना

बैंकर्ट रिपेयर सर्जरी  (Bankart Repair Surgery)

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1 बैंकर्ट रिपेयर सर्जरी (Bankart Repair Surgery)

बैंकर्ट रिपेयर सर्जरी: प्रक्रिया, लाभ और पुनर्वास योजना

बैंकर्ट रिपेयर सर्जरी: कंधे का जोड़ शरीर का सबसे अधिक गतिशील और लचीला जोड़ है, जो इसे विभिन्न दिशाओं में गति प्रदान करने की क्षमता देता है। हालांकि, इसकी यही गतिशीलता इसे अस्थिरता और चोटों के प्रति संवेदनशील बनाती है। कंधे की अस्थिरता से जुड़ी सबसे आम चोटों में से एक बैंकर्ट घाव (Bankart Lesion) है, जो आमतौर पर कंधे के आगे की अव्यवस्था (anterior dislocation) के कारण होता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब ह्यूमरस हड्डी का सिरनुमा हिस्सा ग्लेनॉइड लैब्रम से बाहर निकल जाता है, जिससे लैब्रम और संबंधित लिगामेंट्स में क्षति हो जाती है।

बैंकर्ट घाव के लक्षणों में बार-बार कंधे का निकलना (dislocation), जोड़ में ढीलापन, तेज दर्द, गतिविधि के दौरान अस्थिरता महसूस होना और कंधे की गति में कमी शामिल हो सकते हैं। इस स्थिति के निदान के लिए डॉक्टर शारीरिक परीक्षण के साथ एमआरआई या सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं ताकि लैब्रम की क्षति का सही आकलन किया जा सके।

इसका उपचार गैर-शल्य चिकित्सा और शल्य चिकित्सा दोनों तरीकों से किया जा सकता है। हल्के मामलों में फिजिकल थेरेपी और व्यायाम से स्थिति में सुधार लाया जा सकता है, लेकिन गंभीर या बार-बार होने वाली अस्थिरता के मामलों में आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर (Arthroscopic Bankart Repair) एक प्रभावी विकल्प होता है। इस प्रक्रिया में आर्थ्रोस्कोप (एक छोटी कैमरा युक्त उपकरण) की सहायता से लैब्रम और लिगामेंट्स को हड्डी से पुनः जोड़ा जाता है, जिससे कंधे की स्थिरता और कार्यक्षमता बहाल होती है।

शल्य चिकित्सा के बाद पुनर्प्राप्ति में कई सप्ताह लग सकते हैं। शुरुआती चरण में हाथ को स्थिर रखने के लिए स्लिंग का उपयोग किया जाता है, इसके बाद धीरे-धीरे गति और ताकत बढ़ाने के लिए पुनर्वास अभ्यास शुरू किए जाते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में संक्रमण, स्टिफनेस, पुनः अव्यवस्था और लैब्रम के सही ढंग से न जुड़ने जैसी जटिलताएं हो सकती हैं, लेकिन सही देखभाल और पुनर्वास से अधिकांश मरीज सफलतापूर्वक सामान्य गतिविधियों में लौट सकते हैं।

बैंकर्ट घाव के कारण

बैंकर्ट घाव तब होता है जब लैब्रुम, जो कंधे के सॉकेट (ग्लेनॉइड) के चारों ओर एक उपास्थि की अंगूठी होती है, कंधे की अव्यवस्था (dislocation) के कारण फट जाती है। यह लैब्रुम कंधे के जोड़ को स्थिर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन जब यह क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो कंधे की अस्थिरता बढ़ जाती है और भविष्य में पुनः अव्यवस्था की संभावना बढ़ जाती है।

1. आघात (Trauma)

सीधे कंधे पर चोट लगने या फैले हुए हाथ पर गिरने से बैंकर्ट घाव होने की संभावना अधिक होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति संतुलन बिगड़ने पर अपने हाथ को आगे बढ़ाकर गिरता है, तो अचानक झटका कंधे को उसकी सामान्य स्थिति से बाहर कर सकता है, जिससे लैब्रुम फट सकता है।

2. खेल की चोटें (Sports Injuries)

रग्बी, फुटबॉल, बास्केटबॉल, कुश्ती और जिम्नास्टिक जैसे उच्च प्रभाव वाले खेलों में खिलाड़ियों को बार-बार झटके और टकराव सहन करने पड़ते हैं, जिससे कंधे की अव्यवस्था और लैब्रुम की क्षति की संभावना बढ़ जाती है। इन खेलों में अक्सर अचानक और बलपूर्वक कंधे के खिंचाव या मुड़ने के कारण बैंकर्ट घाव हो सकता है।

3. बार-बार ओवरहेड मूवमेंट्स (Repetitive Overhead Movements)

कुछ खेल और गतिविधियाँ, जैसे तैराकी, बेसबॉल पिचिंग, बैडमिंटन, टेनिस और भारोत्तोलन, कंधे के जोड़ पर अत्यधिक दबाव डालती हैं। बार-बार ओवरहेड मूवमेंट के कारण लैब्रुम धीरे-धीरे कमजोर हो सकता है, जिससे बैंकर्ट घाव की संभावना बढ़ जाती है।

4. जन्मजात ढीलापन (Congenital Laxity)

कुछ लोगों में स्वाभाविक रूप से लिगामेंट्स (ऊत्तकों जो हड्डियों को जोड़ते हैं) अधिक लचीले होते हैं। यह लचीलेपन (hyperlaxity) के कारण उनके कंधे सामान्य से अधिक गति कर सकते हैं, जिससे लैब्रुम को क्षति पहुंचने और बैंकर्ट घाव होने की संभावना बढ़ जाती है। यह स्थिति अक्सर उन लोगों में देखी जाती है जो अत्यधिक लचीले होते हैं या जिनकी संयुक्त संरचना अन्य लोगों की तुलना में भिन्न होती है।

5. पिछली अव्यवस्थाएँ (Previous Dislocations)

यदि किसी व्यक्ति को पहले भी कंधे की अव्यवस्था हो चुकी है, तो उसकी लैब्रुम पहले से ही कमजोर हो सकती है। ऐसी स्थिति में, भविष्य में हल्की-फुल्की चोटों या अचानक झटकों से भी कंधे की पुनः अव्यवस्था हो सकती है, जिससे लैब्रुम पर अधिक दबाव पड़ता है और बैंकर्ट घाव की गंभीरता बढ़ सकती है।

बैंकर्ट घाव को रोकने के लिए कंधे को मजबूत बनाए रखना, उचित वार्म-अप और स्ट्रेचिंग करना, और खेल या अन्य गतिविधियों के दौरान सही तकनीक अपनाना महत्वपूर्ण होता है।

बैंकर्ट घाव के लक्षण

बैंकर्ट घाव से प्रभावित रोगियों को आमतौर पर कंधे की अस्थिरता और कार्यक्षमता में कमी का अनुभव होता है। यह स्थिति विशेष रूप से उन लोगों में अधिक देखी जाती है, जो खेल या शारीरिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। इसके प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:

1. बार-बार कंधे की अव्यवस्था (Recurrent Shoulder Dislocations)

बैंकर्ट घाव होने पर कंधे की संरचनात्मक स्थिरता प्रभावित होती है, जिससे यह बार-बार अपनी जगह से खिसक सकता है। विशेष रूप से, जब रोगी ओवरहेड गतिविधियों या तेज़ी से घुमाने वाली क्रियाओं को करता है, तो कंधे की अव्यवस्था की संभावना अधिक हो जाती है।

2. ओवरहेड गतिविधियों के दौरान दर्द और असुविधा (Pain and Discomfort During Overhead Activities)

कंधे की अस्थिरता के कारण रोगी को ऊँची उठाने वाली गतिविधियों (जैसे—स्वीमिंग, वेटलिफ्टिंग, टेनिस, बैडमिंटन, आदि) के दौरान दर्द और असुविधा महसूस हो सकती है। यह दर्द मामूली से गंभीर तक हो सकता है और कंधे के मूवमेंट को सीमित कर सकता है।

3. अस्थिरता या कमजोरी की भावना (Feeling of Instability or Weakness)

बैंकर्ट घाव वाले मरीजों को यह महसूस हो सकता है कि उनका कंधा स्थिर नहीं है या किसी भी समय अपनी जगह से खिसक सकता है। यह अस्थिरता विशेष रूप से उन गतिविधियों में स्पष्ट होती है, जिनमें बाहों को सिर के ऊपर उठाना या घुमाना शामिल होता है।

4. कंधे के जोड़ में क्लिक या पॉप ध्वनियाँ (Clicking or Popping Sounds in the Shoulder Joint)

कुछ रोगी कंधे की गतिविधि के दौरान “क्लिक” या “पॉप” जैसी आवाज़ें महसूस कर सकते हैं। ये ध्वनियाँ आमतौर पर लैब्रुम की क्षति के कारण होती हैं, जब हड्डियां अपनी सामान्य स्थिति में वापस आने का प्रयास करती हैं।

5. गति की सीमा में कमी (Reduced Range of Motion)

कंधे की अस्थिरता और दर्द के कारण रोगी की कंधे को घुमाने और उठाने की क्षमता सीमित हो जाती है। वे सामान्य रूप से हाथ को ऊपर या पीछे ले जाने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, जिससे रोज़मर्रा की गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं।

यदि किसी व्यक्ति को बार-बार कंधे की अव्यवस्था या उपरोक्त लक्षणों का अनुभव हो रहा है, तो उसे शीघ्र ही किसी आर्थोपेडिक विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। प्रारंभिक निदान और उचित उपचार से कंधे की स्थिरता को बहाल किया जा सकता है और आगे की जटिलताओं से बचा जा सकता है।

बैंकर्ट घाव का निदान

बैंकर्ट घाव के सटीक निदान के लिए डॉक्टर विभिन्न नैदानिक परीक्षणों और इमेजिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कंधे की अस्थिरता का कारण लैब्रुम की क्षति है, निम्नलिखित प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं:

1. शारीरिक परीक्षण (Physical Examination)

डॉक्टर सबसे पहले रोगी के कंधे की स्थिरता और गति सीमा का मूल्यांकन करने के लिए शारीरिक परीक्षण करते हैं। कुछ सामान्य परीक्षण इस प्रकार हैं:

  • एप्रिहेंशन टेस्ट (Apprehension Test): इस परीक्षण में डॉक्टर रोगी के कंधे को बाहरी रूप से घुमाते हैं। यदि रोगी को अस्थिरता या दर्द महसूस होता है, तो यह बैंकर्ट घाव का संकेत हो सकता है।
  • रिलोकेशन टेस्ट (Relocation Test): यदि एप्रिहेंशन टेस्ट के दौरान दर्द होता है और कंधे को दबाने से आराम मिलता है, तो यह लैब्रुम की क्षति की ओर संकेत करता है।
  • लोड एंड शिफ्ट टेस्ट (Load and Shift Test): इसमें कंधे की हड्डी को हल्का धक्का देकर इसकी स्थिरता की जांच की जाती है।

2. एक्स-रे (X-Ray)

एक्स-रे का उपयोग आमतौर पर हड्डी से जुड़ी समस्याओं की पहचान के लिए किया जाता है। हालांकि, लैब्रुम जैसी नरम ऊतक की चोटें एक्स-रे में स्पष्ट रूप से नहीं दिखतीं, लेकिन यह किसी भी संभावित फ्रैक्चर या हड्डी की असामान्यता को बाहर निकालने में मदद करता है।

3. एमआरआई (Magnetic Resonance Imaging – MRI)

एमआरआई स्कैन बैंकर्ट घाव की पुष्टि करने में सबसे प्रभावी तकनीक है। यह लैब्रुम और अन्य नरम ऊतकों (ligaments, tendons) की क्षति को स्पष्ट रूप से दिखाता है। कई मामलों में, डॉक्टर एमआरआई के साथ संवर्धित एमआरआर्थ्रोग्राफी (MR Arthrography) की सलाह देते हैं, जिसमें कंट्रास्ट डाई का उपयोग करके लैब्रुम की चोटों का अधिक सटीक आकलन किया जाता है।

4. सीटी स्कैन (CT Scan)

यदि संदेह हो कि हड्डी के साथ भी कोई जटिल क्षति (जैसे—ग्लेनॉइड हड्डी में डेंट या हिल-सैक्स घाव) हुई है, तो सीटी स्कैन का उपयोग किया जाता है। यह विशेष रूप से उन मामलों में मदद करता है, जहां लैब्रुम के साथ हड्डी की संरचना भी प्रभावित होती है।

बैंकर्ट घाव का सही निदान करने के लिए शारीरिक परीक्षण के साथ इमेजिंग तकनीकों का संयोजन आवश्यक होता है। एमआरआई लैब्रुम की क्षति की पुष्टि करने में सबसे प्रभावी होता है, जबकि एक्स-रे और सीटी स्कैन हड्डी से संबंधित जटिलताओं का मूल्यांकन करने में सहायक होते हैं। सही निदान के आधार पर उपयुक्त उपचार रणनीति बनाई जाती है, जिससे कंधे की स्थिरता और कार्यक्षमता को बहाल किया जा सके।

बैंकर्ट घाव के उपचार विकल्प

बैंकर्ट घाव के उपचार का लक्ष्य कंधे की स्थिरता बहाल करना और दर्द को कम करना है। उपचार की योजना रोगी की स्थिति की गंभीरता, उम्र, गतिविधि स्तर और लक्षणों की आवृत्ति पर निर्भर करती है। इसे दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

1. गैर-शल्य चिकित्सा उपचार (Non-Surgical Treatment)

जो मरीज हल्की अस्थिरता या पहली बार हुई कंधे की अव्यवस्था का अनुभव कर रहे हैं, उनके लिए रूढ़िवादी (conservative) उपचार उपयुक्त हो सकता है। इसमें शामिल हैं:

A. भौतिक चिकित्सा (Physical Therapy)

  • रोटेटर कफ और स्कैपुलर मांसपेशियों को मजबूत करने के व्यायाम किए जाते हैं ताकि कंधे की स्थिरता में सुधार हो सके।
  • कंधे की गतिशीलता बनाए रखने और जोड़ को पुनः स्थिर करने के लिए विशिष्ट मांसपेशी पुनर्वास अभ्यास किए जाते हैं।
  • कंधे के लचीलेपन और संतुलन को बढ़ाने के लिए प्रोप्रियोसेप्टिव ट्रेनिंग (Proprioceptive Training) दी जाती है।

B. गतिविधि संशोधन (Activity Modification)

  • उन गतिविधियों से बचने की सलाह दी जाती है जो कंधे की अस्थिरता को बढ़ा सकती हैं, जैसे ओवरहेड मूवमेंट्स, भारी वजन उठाना, या कंधे को बार-बार घुमाने वाले खेल
  • खेलों में भाग लेने वाले एथलीटों को तकनीक में सुधार और वैकल्पिक व्यायाम अपनाने की सलाह दी जाती है।

C. ब्रेसिंग (Bracing)

  • कुछ मामलों में, कंधे को अस्थायी रूप से स्थिर रखने के लिए ब्रेस (brace) या स्लिंग का उपयोग किया जाता है, खासकर शुरुआती चरणों में।
  • यह उन मरीजों के लिए उपयोगी हो सकता है जो बार-बार कंधे की हल्की अस्थिरता का अनुभव करते हैं।

D. एनएसएआईडी (NSAIDs) और दर्द प्रबंधन

  • नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे आइबुप्रोफेन या नैप्रोक्सेन का उपयोग दर्द और सूजन को कम करने के लिए किया जाता है।
  • यदि दर्द गंभीर हो, तो कॉर्टिकोस्टेरॉयड इंजेक्शन का भी सहारा लिया जा सकता है।

2. शल्य चिकित्सा उपचार (Surgical Treatment) – आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर

जिन रोगियों में बार-बार कंधे की अव्यवस्था होती है या जिनके कंधे में अत्यधिक अस्थिरता है, उनके लिए आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर (Arthroscopic Bankart Repair) को गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है।

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर प्रक्रिया:

  • इस प्रक्रिया में आर्थ्रोस्कोप (एक छोटा कैमरा युक्त उपकरण) का उपयोग किया जाता है, जिससे छोटे चीरे (incisions) के माध्यम से सर्जरी की जाती है।
  • लैब्रुम (Labrum) को उसकी मूल स्थिति में वापस लाने के लिए एंकर और स्यूचर (टांके) का उपयोग किया जाता है।
  • यह प्रक्रिया मिनिमली इनवेसिव होती है, जिससे उपचार की गति तेज होती है और जटिलताओं की संभावना कम होती है

शल्य चिकित्सा की आवश्यकता कब होती है?

  • यदि रोगी को बार-बार कंधे की अव्यवस्था हो रही हो
  • जब गैर-शल्य चिकित्सा उपचार के बावजूद लक्षण बने रहें
  • यदि रोगी खेल गतिविधियों में सक्रिय है और कंधे की स्थिरता महत्वपूर्ण है
  • गंभीर लैब्रल आंसू (Severe Labral Tear) या हड्डी के नुकसान (Bony Bankart Lesion) के मामलों में।

बैंकर्ट घाव का उपचार रोगी की स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करता है। हल्के मामलों में, भौतिक चिकित्सा और गतिविधि संशोधन से सुधार संभव है, जबकि बार-बार होने वाली अस्थिरता या गंभीर घावों के लिए आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर सबसे प्रभावी समाधान होता है। सही उपचार से कंधे की कार्यक्षमता और स्थिरता को पुनः प्राप्त किया जा सकता है, जिससे रोगी सामान्य गतिविधियों में वापस लौट सकता है।

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर का उद्देश्य

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर एक प्रभावी शल्य चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य कंधे की स्थिरता को बहाल करना और पुनरावर्ती अस्थिरता को रोकना है। इस प्रक्रिया के माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा किया जाता है:

  1. फटे लैब्रुम को ग्लेनॉइड से पुनः जोड़ना – लैब्रुम (cartilage) की मरम्मत करके कंधे के जोड़ की संरचनात्मक अखंडता को बहाल किया जाता है।
  2. कंधे की स्थिरता को बहाल करना – क्षतिग्रस्त लैब्रुम और लिगामेंट्स को सही स्थिति में लाने से कंधे की स्थिरता बढ़ती है।
  3. भविष्य की अव्यवस्था को रोकना – लैब्रुम को सर्जरी द्वारा ठीक करने से पुनरावर्ती कंधे की अव्यवस्था (shoulder dislocations) की संभावना कम हो जाती है।
  4. कंधे की कार्यक्षमता में सुधार करना – स्थिरता बढ़ने के साथ-साथ रोगी की सामान्य गतिविधियों और खेलों में भागीदारी बेहतर होती है।

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर प्रक्रिया

इस प्रक्रिया को एक न्यूनतम इनवेसिव (minimally invasive) तकनीक के रूप में जाना जाता है, जो तेज़ पुनर्प्राप्ति और कम जटिलताओं के साथ प्रभावी परिणाम प्रदान करती है। इसे निम्नलिखित चरणों में पूरा किया जाता है:

1. पूर्व-ऑपरेटिव तैयारी (Pre-Operative Preparation)

सर्जरी से पहले डॉक्टर विभिन्न जांचों और पूर्व-तैयारियों को सुनिश्चित करते हैं:

  • इमेजिंग टेस्ट: एमआरआई और एक्स-रे के माध्यम से लैब्रल आंसू की गंभीरता का मूल्यांकन किया जाता है।
  • भौतिक चिकित्सा: सर्जरी से पहले कुछ रोगियों को मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए भौतिक चिकित्सा दी जाती है।
  • रोगी शिक्षा: डॉक्टर मरीज को सर्जरी की प्रक्रिया, संभावित जोखिम और पुनर्प्राप्ति के चरणों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं।

2. एनेस्थीसिया (Anesthesia)

रोगी को निम्नलिखित प्रकार के एनेस्थीसिया दिए जा सकते हैं:

  • सामान्य एनेस्थीसिया (General Anesthesia) – जिससे रोगी पूरी तरह बेहोश हो जाता है।
  • क्षेत्रीय तंत्रिका ब्लॉक (Regional Nerve Block) – जिससे केवल कंधे और बांह का क्षेत्र सुन्न किया जाता है, जिससे रोगी सर्जरी के दौरान दर्द महसूस नहीं करता।

3. आर्थ्रोस्कोपिक दृष्टिकोण (Arthroscopic Approach)

  • डॉक्टर कंधे के चारों ओर छोटे चीरे (incisions) बनाते हैं।
  • एक आर्थ्रोस्कोप (arthroscope), जिसमें एक छोटा कैमरा और लाइट लगी होती है, इन चीरों के माध्यम से डाला जाता है।
  • आर्थ्रोस्कोप कैमरे के माध्यम से कंधे के जोड़ के अंदर की विस्तृत छवि प्रदान करता है, जिससे सर्जन लैब्रुम की क्षति का मूल्यांकन कर सकते हैं।

4. लैब्रुम रिपेयर (Labrum Repair)

  • क्षतिग्रस्त लैब्रुम को पुनः ग्लेनॉइड हड्डी से जोड़ने के लिए स्यूचर एंकर (Suture Anchors) का उपयोग किया जाता है।
  • स्यूचर एंकर एक छोटा जैव-अवशोषित या धातु का उपकरण होता है, जो लैब्रुम को हड्डी से जोड़ने में मदद करता है।
  • टांकों (stitches) के माध्यम से लैब्रुम को उसकी प्राकृतिक स्थिति में वापस लाया जाता है, जिससे जोड़ की स्थिरता पुनः स्थापित होती है।

5. बंद और ड्रेसिंग (Closure and Dressing)

  • सभी उपकरणों को हटाने के बाद, छोटे चीरों को सर्जिकल टांकों या सर्जिकल टेप से बंद कर दिया जाता है।
  • कंधे को स्थिर रखने के लिए एक स्लिंग (sling) लगाया जाता है, जिसे कुछ हफ्तों तक पहनने की सलाह दी जाती है।
  • घाव को सुरक्षित रखने के लिए उस पर विशेष ड्रेसिंग लगाई जाती है।

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर एक कुशल और न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है, जो कंधे की अस्थिरता को ठीक करने और लैब्रुम को पुनः जोड़ने में मदद करती है। सर्जरी के बाद उचित पुनर्वास और भौतिक चिकित्सा आवश्यक होती है ताकि कंधे की कार्यक्षमता को पूरी तरह बहाल किया जा सके।

पुनर्प्राप्ति और पुनर्वास

बैंकर्ट रिपेयर सर्जरी के बाद कंधे की स्थिरता और कार्यक्षमता को बहाल करने के लिए एक चरणबद्ध पुनर्वास प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस दौरान रोगी को धीरे-धीरे सामान्य गतिविधियों में वापस लौटने की अनुमति दी जाती है।

पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल

सर्जरी के बाद की देखभाल का उद्देश्य दर्द को कम करना, सूजन को नियंत्रित करना और उचित पुनर्वास सुनिश्चित करना होता है।

1. स्थिरीकरण (Immobilization) – 4-6 सप्ताह

  • कंधे को स्थिर रखने के लिए रोगी को 4-6 सप्ताह तक स्लिंग पहननी होती है
  • रोगी को कंधे के अनावश्यक हिलने-डुलने से बचने की सलाह दी जाती है।
  • नींद के दौरान उचित सहारा देने के लिए तकियों का उपयोग किया जाता है।

2. दर्द प्रबंधन (Pain Management)

  • दर्द और सूजन को कम करने के लिए NSAIDs (Non-Steroidal Anti-Inflammatory Drugs) या डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाओं का सेवन किया जाता है।
  • ठंडी सिकाई (Ice Therapy) का उपयोग सूजन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

3. निष्क्रिय और सक्रिय व्यायाम की क्रमिक पुनः शुरुआत

  • प्रारंभिक चरण में निष्क्रिय व्यायाम (Passive Exercises) किए जाते हैं, जिसमें चिकित्सक या भौतिक चिकित्सक कंधे की हल्की गति करवाते हैं।
  • धीरे-धीरे सक्रिय (Active) और प्रतिरोधी (Resistive) व्यायाम शामिल किए जाते हैं ताकि मांसपेशियों को मजबूत किया जा सके।

बैंकर्ट रिपेयर पुनर्वास प्रोटोकॉल

पुनर्वास प्रक्रिया को चार चरणों में विभाजित किया जाता है, जो रोगी की प्रगति और कंधे की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए किए जाते हैं।

चरण 1: स्थिरीकरण (0-6 सप्ताह)

इस चरण में कंधे को अत्यधिक हिलाने से बचाया जाता है और प्रारंभिक रिकवरी पर ध्यान दिया जाता है।

  • हाथ का स्लिंग उपयोग: 4-6 सप्ताह तक निरंतर पहनने की सलाह दी जाती है।
  • निष्क्रिय गति व्यायाम: चिकित्सक की सहायता से हल्के पैसिव रेंज ऑफ मोशन (PROM) अभ्यास किए जाते हैं।
  • आइसोमेट्रिक कंधे व्यायाम: प्रारंभिक चरण में मांसपेशियों की गतिविधि बनाए रखने के लिए हल्के आइसोमेट्रिक व्यायाम शामिल किए जाते हैं।

चरण 2: प्रारंभिक सशक्तिकरण (6-12 सप्ताह)

इस चरण में कंधे की ताकत और गति को बढ़ाने के लिए हल्के व्यायाम शुरू किए जाते हैं।

  • सक्रिय-सहायक व्यायाम: रोगी स्वयं कंधे को धीरे-धीरे हिलाने का प्रयास करता है, जबकि चिकित्सक सहायता प्रदान करता है।
  • प्रतिरोध प्रशिक्षण: हल्के प्रतिरोधी बैंड और भार का उपयोग कर कंधे की मांसपेशियों को मजबूत किया जाता है।
  • स्कैपुलर स्थिरीकरण व्यायाम: स्कैपुला (कंधे की हड्डी) को स्थिर रखने के लिए विशिष्ट व्यायाम किए जाते हैं।

चरण 3: उन्नत सशक्तिकरण (3-6 महीने)

रोगी की मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाने और कंधे की गतिशीलता को सामान्य करने के लिए गहन पुनर्वास किया जाता है।

  • खेल-विशिष्ट ड्रिल्स: यदि रोगी एथलीट है, तो उसके खेल से संबंधित गतिविधियों को दोबारा शुरू किया जाता है।
  • प्रोप्रीओसेप्शन प्रशिक्षण: यह व्यायाम संतुलन और शरीर के नियंत्रण को सुधारने में मदद करता है।
  • पूर्ण गति सीमा बहाली: कंधे की गतिशीलता और लचीलापन पूरी तरह से पुनः प्राप्त करने पर ध्यान दिया जाता है।

चरण 4: गतिविधि में वापसी (6+ महीने)

इस चरण में रोगी को सामान्य दिनचर्या और खेल गतिविधियों में लौटने की अनुमति दी जाती है।

  • पूर्ण खेल भागीदारी के लिए अनुमति: रोगी को सामान्य गतिविधियों में वापस लौटने की मंजूरी मिलती है, यदि चिकित्सक इसे सुरक्षित मानते हैं।
  • निरंतर शक्ति और लचीलापन प्रशिक्षण: कंधे की मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखने के लिए निरंतर व्यायाम जारी रखा जाता है।

बैंकर्ट रिपेयर के दीर्घकालिक दुष्प्रभाव

हालांकि बैंकर्ट रिपेयर आमतौर पर सफल होता है, कुछ रोगियों को दीर्घकालिक जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है:

  1. जकड़न और गति की सीमा में कमी – कुछ रोगियों को पूर्ण गति सीमा बहाल करने में कठिनाई हो सकती है।
  2. अस्थिरता की पुनरावृत्ति – कुछ मामलों में, कंधे की अस्थिरता वापस आ सकती है, खासकर यदि पुनर्वास सही ढंग से न किया जाए।
  3. दर्द और असुविधा – कुछ रोगियों को दीर्घकालिक हल्के से मध्यम दर्द का अनुभव हो सकता है।
  4. सर्जरी के बाद गठिया (Post-Surgical Arthritis) – लैब्रल रिपेयर के बाद कुछ मरीजों में जोड़ों में सूजन और गठिया विकसित हो सकता है।
  5. लंबे समय तक स्थिरीकरण के कारण मांसपेशियों की कमजोरी – यदि पुनर्वास सही तरीके से न किया जाए, तो मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं, जिससे कंधे की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर के बाद एक संरचित पुनर्वास कार्यक्रम का पालन करना आवश्यक होता है ताकि कंधे की स्थिरता और ताकत को पूरी तरह से पुनः स्थापित किया जा सके। रोगी को चरणबद्ध व्यायाम, पर्याप्त आराम और पेशेवर चिकित्सा देखरेख के माध्यम से धीरे-धीरे सामान्य गतिविधियों में लौटने की सलाह दी जाती है। सही पुनर्वास से सर्जरी के सफल परिणामों की संभावना बढ़ जाती है और दीर्घकालिक जटिलताओं का जोखिम कम होता है।

निष्कर्ष

आर्थ्रोस्कोपिक बैंकर्ट रिपेयर कंधे की अस्थिरता के इलाज के लिए एक अत्यधिक प्रभावी प्रक्रिया है। सर्जिकल तकनीकों में प्रगति और व्यापक पुनर्वास प्रोटोकॉल के साथ, अधिकांश रोगी अपनी पूरी कार्यक्षमता प्राप्त कर लेते हैं और अपनी इच्छित गतिविधियों में वापस लौट सकते हैं। हालांकि, इष्टतम पुनर्प्राप्ति के लिए उचित पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल और भौतिक चिकित्सा दिशानिर्देशों का पालन करना आवश्यक है।

 

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