बवासीर की दवाओं से करते रहे इलाज, असली बीमारी थी एनल कैंसर – दोनों में फर्क कैसे करें?

बवासीर की दवाओं से करते रहे इलाज, असली बीमारी थी एनल कैंसर – दोनों में फर्क कैसे करें?

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2 एनल कैंसर की पुष्टि कैसे होती है?

भारत में लाखों लोग गुदा संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनमें सबसे आम समस्या है – बवासीर या पाइल्स। जैसे ही किसी व्यक्ति को गुदा (Anus) में दर्द, जलन, खुजली या मल त्याग के समय खून आने लगता है, वह बिना किसी डॉक्टर की सलाह के तुरंत इसे बवासीर मान लेता है। लोग शर्म या संकोच के कारण अक्सर इस विषय में खुलकर बात नहीं करते और अपने स्तर पर घरेलू नुस्खों, आयुर्वेदिक दवाइयों या मेडिकल स्टोर से बिना पर्ची खरीदी गई दवाओं से इलाज करने लगते हैं।

समस्या तब गंभीर हो जाती है जब यह लक्षण दरअसल किसी अन्य बीमारी के संकेत होते हैं, खासकर एनल कैंसर (Anal Cancer) के। एनल कैंसर एक दुर्लभ लेकिन तेजी से बढ़ने वाला कैंसर है, जो गुदा मार्ग की कोशिकाओं में होता है। इसके शुरुआती लक्षण बवासीर जैसे लगते हैं – जैसे खून आना, गांठ बनना या दर्द – जिससे भ्रम पैदा होता है। नतीजतन, व्यक्ति सालों तक कैंसर को नजरअंदाज करता रहता है, जब तक वह शरीर में फैल न जाए।

इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि ऐसे लक्षणों को हल्के में न लें और उचित समय पर डॉक्टर से जांच कराकर सही निदान कराएं, ताकि गंभीर रोगों से समय रहते बचाव किया जा सके।

बवासीर क्या है? (What is Piles / Hemorrhoids?)

बवासीर, जिसे अंग्रेज़ी में पाइल्स (Piles) या हैमोरॉयड्स (Hemorrhoids) कहा जाता है, एक आम लेकिन कष्टदायक बीमारी है, जो मलद्वार (Anus) और रेक्टम (Rectum) की नसों में सूजन या फुलाव के कारण होती है। यह समस्या तब होती है जब गुदा क्षेत्र की रक्त वाहिकाओं पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिससे वे सूज जाती हैं और गांठ जैसा स्वरूप ले लेती हैं।

बवासीर दो प्रकार की होती है:

1. आंतरिक बवासीर (Internal Hemorrhoids)

यह मलद्वार के अंदर पाई जाती है और आमतौर पर दर्दरहित होती है। जब व्यक्ति शौच करता है तो ताजा लाल खून मल के साथ या टॉयलेट पेपर पर दिख सकता है। आंतरिक बवासीर कभी-कभी मलद्वार के बाहर निकल भी आती है (prolapse), जिससे असहजता बढ़ सकती है।

2. बाहरी बवासीर (External Hemorrhoids)

यह मलद्वार के बाहरी हिस्से में त्वचा के नीचे होती है। इसमें सूजन के साथ दर्द, जलन और खुजली होती है। कभी-कभी इसमें रक्त के थक्के जम जाते हैं, जिससे थ्रोम्बोस्ड हेमोरॉयड्स हो सकते हैं, जो बेहद पीड़ादायक होते हैं।

बवासीर के प्रमुख लक्षण

  • मल त्याग के समय या बाद में ताजा खून आना
  • मलद्वार के आसपास जलन, खुजली या भारीपन महसूस होना
  • गुदा के पास एक या अधिक गांठों का बन जाना
  • लंबे समय तक बैठने पर दर्द या असहजता
  • बाहरी बवासीर में चलने या उठने-बैठने पर तीव्र दर्द

यह समस्या अधिकतर उन लोगों में देखी जाती है जो कब्ज, गर्भावस्था, ज्यादा वजन, लंबे समय तक खड़े या बैठे रहने, या कम फाइबर वाले आहार के शिकार होते हैं। यदि इन लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए, तो यह बीमारी गंभीर रूप ले सकती है। सही समय पर पहचान और उपचार से बवासीर पूरी तरह से नियंत्रित की जा सकती है।

एनल कैंसर क्या है? (What is Anal Cancer?)

एनल कैंसर (Anal Cancer) गुदा (Anus) के ऊतकों में उत्पन्न होने वाला एक दुर्लभ लेकिन गंभीर कैंसर है। यह उस स्थान पर होता है जहां मल त्याग होता है यानी गुदा मार्ग के अंत में। यह कैंसर आमतौर पर स्क्वैमस सेल्स (Squamous Cells) से शुरू होता है, जो गुदा की सतह को ढँकते हैं।

एनल कैंसर अन्य कैंसरों की तुलना में कम पाया जाता है, लेकिन इसका खतरा इसलिए अधिक होता है क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण बवासीर (पाइल्स) जैसे दिखते हैं। यही कारण है कि लोग इसे मामूली समझकर इलाज में देर कर देते हैं।

एनल कैंसर के प्रमुख लक्षण:

  1. मलद्वार से खून आना:
    लगातार या रुक-रुक कर ताजा खून आना, जिसे लोग अक्सर बवासीर समझ बैठते हैं।

  2. एक बढ़ती हुई गांठ:
    गुदा के पास महसूस होने वाली गांठ जो समय के साथ बड़ी होती जाती है, दर्द या असहजता भी हो सकती है।

  3. मल त्याग में बदलाव:
    मल का पतला या संकीर्ण हो जाना, बार-बार मल त्याग की इच्छा होना, या कब्ज-जैसे लक्षण।

  4. मलद्वार में लगातार दर्द:
    विशेष रूप से बैठने पर या शौच के समय तेज दर्द होना।

  5. मवाद या बदबूदार स्राव:
    गुदा से स्राव होना जो दुर्गंधयुक्त हो सकता है, संक्रमण का संकेत हो सकता है।

  6. अचानक वजन घट जाना:
    बिना प्रयास के तेजी से वजन कम होना।

  7. थकान और भूख में कमी:
    शरीर में ऊर्जा की कमी, कमजोरी महसूस होना, और भूख कम लगना।

नोट: बवासीर और एनल कैंसर के लक्षणों में काफी समानता होती है – जैसे खून आना, गांठ बनना या दर्द। इसी वजह से भ्रम पैदा होता है, और मरीज लंबे समय तक बवासीर का इलाज करते रहते हैं जबकि अंदर कैंसर बढ़ता जाता है।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि यदि कोई व्यक्ति उपरोक्त लक्षणों का अनुभव कर रहा है और घरेलू इलाज या दवाओं से आराम नहीं मिल रहा, तो उसे तुरंत कोलन और रेक्टल स्पेशलिस्ट या ऑन्कोलॉजिस्ट से संपर्क कर जांच करवानी चाहिए। शुरुआती अवस्था में एनल कैंसर का पता चलने पर इलाज आसान और सफल हो सकता है।

बवासीर और एनल कैंसर में अंतर कैसे पहचानें?

विशेषताबवासीरएनल कैंसर
खून आनामल त्याग के समय ताजा लाल खूनलगातार, कभी-कभी काला या मवाद के साथ
दर्दबाहरी बवासीर में ही होता हैलगातार, बढ़ता हुआ दर्द
गांठस्थिर रहती हैसमय के साथ आकार में बढ़ती है
खुजलीआम बातकम
वजन घटनानहीं होतीहोती है
थकाननहीं होतीहोती है
संक्रमण या मवादनहीं होताहो सकता है
मल का आकारसामान्यपतला या रिबन जैसा
जांच से पुष्टिएनल स्पेकुलम से देखा जा सकता हैबायोप्सी, CT, MRI से पुष्टि होती है

बवासीर की वजह से एनल कैंसर कैसे छुपा रह सकता है?

भारत में बवासीर एक बेहद सामान्य समस्या है, और शायद यही कारण है कि इसकी आड़ में कई बार एनल कैंसर जैसे गंभीर रोग छुपे रह जाते हैं। बवासीर और एनल कैंसर के लक्षणों में काफी हद तक समानता होती है – जैसे मलद्वार से खून आना, गांठ बनना, जलन और दर्द – जिसकी वजह से न केवल आम लोग बल्कि कई बार अनुभवी चिकित्सक भी शुरुआत में कैंसर को पहचान नहीं पाते।

1. बवासीर को आम मान लिया जाता है:

बवासीर इतनी सामान्य बीमारी है कि लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। वे सोचते हैं कि यह कब्ज, मसालेदार खाना, या लंबे समय तक बैठने के कारण हुआ है और जल्द ठीक हो जाएगा।

2. घरेलू और आयुर्वेदिक इलाज पर निर्भरता:

लोग अक्सर शर्म या डर के कारण डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं और वर्षों तक घरेलू उपाय, आयुर्वेदिक नुस्खे या बिना डॉक्टर की सलाह वाली दवाएं लेते रहते हैं, जिससे असल बीमारी की पहचान नहीं हो पाती।

3. गांठ को बवासीर की गांठ मान लेना:

गुदा में गांठ महसूस होना बवासीर का आम लक्षण माना जाता है, लेकिन जब यही गांठ एनल कैंसर के कारण होती है, तो समय पर ध्यान न देने से स्थिति गंभीर हो जाती है।

4. खून आना – सामान्य समझ लिया जाता है:

मल त्याग के समय खून आना बवासीर का प्रमुख लक्षण है, लेकिन यही लक्षण कैंसर का संकेत भी हो सकता है। अंतर न कर पाने के कारण लोग इसे हल्के में लेते हैं।

5. जांच में देरी:

जब तक दर्द बहुत न बढ़े या स्थिति असहनीय न हो जाए, लोग डॉक्टर के पास नहीं जाते। इस देरी की वजह से कैंसर बढ़ता रहता है और बाद में पहचान मुश्किल हो जाती है।

बवासीर और एनल कैंसर के बीच अंतर करना शुरुआती स्तर पर मुश्किल जरूर है, लेकिन यदि लक्षण लंबे समय तक बने रहें, या सामान्य इलाज से राहत न मिले, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेकर सिग्मॉइडोस्कोपी, बायोप्सी या एनल एग्ज़ामिनेशन जैसी जांचें कराना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि सही समय पर पता चल जाए तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी बचाव संभव है।

एनल कैंसर की पुष्टि कैसे होती है?

जब गुदा (Anus) में होने वाली समस्याएं लंबे समय तक बनी रहें, और सामान्य बवासीर का इलाज असरदार न हो, तो डॉक्टर को यह संदेह हो सकता है कि मामला सिर्फ बवासीर का नहीं है – बल्कि उसके पीछे कोई गंभीर कारण, जैसे एनल कैंसर भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर मरीज की विस्तृत जांच करते हैं, ताकि सटीक निदान हो सके।

(1) डिजिटल रेक्टल एग्जाम (DRE):

यह जांच सबसे पहली और सरल होती है। इसमें डॉक्टर दस्ताने पहनकर और लुब्रिकेंट लगाकर अपनी एक उंगली से मलद्वार और उसके अंदर की दीवारों को महसूस करता है। यदि कोई गांठ, सूजन या कठोरपन महसूस होता है, तो आगे की जांच की सलाह दी जाती है।

(2) एनोस्कोपी / प्रोक्टोस्कोपी:

इस प्रक्रिया में एक पतली, लाइट लगी ट्यूब (एनोस्कोप या प्रोक्टोस्कोप) को मलद्वार के अंदर डाला जाता है, जिससे डॉक्टर गुदा और रेक्टम की अंदरूनी सतह को साफ-साफ देख पाता है। इससे अंदर की कोई असामान्यता जैसे गांठ, जख्म या संक्रमण तुरंत पकड़ में आ सकता है।

(3) बायोप्सी:

यदि किसी गांठ या टिशू पर संदेह होता है, तो डॉक्टर उस हिस्से से एक छोटा सैंपल (टिशू) निकालते हैं और उसे पैथोलॉजी लैब में जांच के लिए भेजते हैं। यहीं से यह स्पष्ट होता है कि गांठ कैंसरस है या नहीं।

(4) इमेजिंग टेस्ट:

यदि बायोप्सी से कैंसर की पुष्टि हो जाती है, तो यह जानने के लिए कि कैंसर कितनी जगह फैला है, CT स्कैन, MRI या PET स्कैन किए जाते हैं। ये शरीर के अंदर के अंगों और लसीकों (Lymph nodes) की जानकारी देते हैं, जिससे इलाज की योजना बनाई जा सके।

इन सभी जांचों का मकसद होता है – जल्दी और सटीक निदान, ताकि इलाज में देरी न हो और रोगी को बेहतर जीवन गुणवत्ता मिल सके।

एनल कैंसर के कारण क्या हैं?

  • HPV (Human Papilloma Virus) संक्रमण
  • बार-बार गुदा में चोट लगना या इन्फेक्शन
  • HIV संक्रमण
  • धूम्रपान
  • कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता
  • 50 वर्ष से अधिक आयु

एनल कैंसर का इलाज क्या है?

इलाज की योजना इस पर निर्भर करती है कि कैंसर किस स्टेज पर है।

(1) रेडिएशन थेरेपी:

रेडिएशन से कैंसर की कोशिकाएं खत्म की जाती हैं।

(2) कीमोथेरेपी:

दवाओं द्वारा कैंसर की कोशिकाएं खत्म की जाती हैं। अक्सर रेडिएशन के साथ दी जाती है।

(3) सर्जरी:

यदि ट्यूमर बड़ा हो जाए तो सर्जरी द्वारा उसे हटाया जाता है।

Early detection में इलाज के बाद 5 साल की सर्वाइवल रेट 80-85% तक होती है।

बवासीर का इलाज कैसे करें?

बिना सर्जरी:

  • फाइबर युक्त आहार
  • खूब पानी पीना
  • व्यायाम
  • इसबगोल / स्टूल सॉफ़्टनर
  • बर्फ की सिकाई और एंटी-इंफ्लेमेटरी क्रीम

सर्जरी के विकल्प:

  • रबर बैंड लिगेशन
  • इंफ्रारेड कोएगुलेशन
  • हेमोरोइडेक्टॉमी
  • स्टेपल हेमोरोइडोपेक्सी

कब सतर्क हो जाना चाहिए?

बवासीर एक आम रोग है, लेकिन यदि इसके जैसे लक्षण लंबे समय तक बने रहें और दवाओं से आराम न मिले, तो यह संकेत हो सकता है कि समस्या कुछ और – जैसे एनल कैंसर हो सकती है। इसलिए समय रहते सतर्क होना बेहद ज़रूरी है।

यदि आप इन लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, तो केवल बवासीर मानकर इलाज न करें:

  1. मल त्याग के दौरान लगातार खून आना:
    अगर हर बार शौच के दौरान ताजा खून आता है, और यह हफ्तों या महीनों तक बंद नहीं हो रहा, तो यह सामान्य पाइल्स नहीं हो सकता।

  2. गांठ का आकार लगातार बढ़ना:
    यदि मलद्वार के पास बनी गांठ दिन-ब-दिन बड़ी होती जा रही है, उसमें सख्ती या असामान्यता है, तो इसे नजरअंदाज न करें।

  3. वजन तेजी से गिर रहा हो:
    बिना कोशिश के वजन का गिरना शरीर में किसी गंभीर बीमारी का संकेत हो सकता है, खासकर कैंसर।

  4. मल का आकार संकरा हो गया हो:
    यदि आपका मल सामान्य से बहुत पतला या संकीर्ण हो गया है, तो यह रेक्टल या एनल पथ में रुकावट का संकेत हो सकता है।

  5. बवासीर की दवाइयों से कोई राहत न मिलना:
    अगर आपने लंबे समय से दवाएं ली हैं, लेकिन लक्षण जस के तस हैं या और बिगड़ रहे हैं, तो यह चिंताजनक हो सकता है।

क्या करें?

ऐसे लक्षणों की अनदेखी करने से गंभीर बीमारियां समय रहते नहीं पकड़ में आतीं। इसलिए यदि ऊपर दिए गए लक्षण आपको लंबे समय से परेशान कर रहे हैं, तो तुरंत किसी प्रोक्टोलॉजिस्ट (गुदा रोग विशेषज्ञ) या ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर विशेषज्ञ) से मिलें। जरूरी परीक्षण करवाएं ताकि समय रहते सही निदान और इलाज हो सके।

ध्यान रखें: सतर्कता ही सबसे बड़ी सुरक्षा है। देर न करें, सेहत से समझौता न करें।

एनल कैंसर से कैसे बचा जा सकता है?

  • HPV वैक्सीन लगवाएं (विशेष रूप से युवाओं को)
  • संरक्षित यौन संबंध बनाएं
  • धूम्रपान छोड़ें
  • मलद्वार में बार-बार चोट या इन्फेक्शन से बचें
  • हाई-फाइबर डाइट और हाइड्रेशन बनाए रखें
  • नियमित हेल्थ चेकअप करवाएं (विशेषकर यदि बवासीर की पुरानी समस्या हो)

वास्तविक केस स्टडी – बवासीर समझते रहे, निकला कैंसर

राजस्थान के रहने वाले 45 वर्षीय रामेश्वर (परिवर्तित नाम) को पिछले एक साल से मल त्याग के दौरान खून आ रहा था। उन्होंने इसे सामान्य बवासीर समझा और स्थानीय वैद्य से आयुर्वेदिक दवाएं लेते रहे। मलद्वार के पास एक गांठ भी थी, लेकिन उसमें कोई तेज दर्द नहीं था, जिससे उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

समय बीतता गया और धीरे-धीरे उनकी थकान बढ़ने लगी, भूख कम हो गई और बिना कारण वजन गिरने लगा। मल भी पहले की तुलना में पतला और संकरा हो गया। जब हालात ज्यादा बिगड़ने लगे, तब उन्होंने डॉक्टर से परामर्श लिया। जांच के दौरान बायोप्सी करवाई गई, जिसमें एनल कैंसर की पुष्टि हुई।

अब रामेश्वर की कीमोथेरेपी चल रही है। वे कहते हैं –
“काश मैंने पहले जांच करवाई होती, तो शायद कैंसर इतनी देर से पता न चलता। अब पछतावे के अलावा कुछ नहीं है।”

यह केस दर्शाता है कि समय पर जांच और सटीक निदान जीवन बचा सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

बवासीर और एनल कैंसर में बहुत सूक्ष्म फर्क है, लेकिन यह फर्क जीवन और मृत्यु का हो सकता है। यदि आप गुदा से खून आने या गांठ की समस्या से लंबे समय से पीड़ित हैं – तो आत्म-निदान पर भरोसा न करें। एक बार डॉक्टर से जांच जरूर कराएं।

“हर खून बवासीर का नहीं होता, और हर गांठ साधारण नहीं होती।”

समय रहते पहचान = जीवन बचाना।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

Q1. क्या बवासीर से एनल कैंसर हो सकता है?

A. नहीं, बवासीर एक सौम्य (non-cancerous) स्थिति है और यह अपने आप कैंसर में परिवर्तित नहीं होती। लेकिन समस्या यह है कि बवासीर और एनल कैंसर के शुरुआती लक्षण काफी हद तक एक जैसे होते हैं, जैसे – खून आना, गांठ बनना, दर्द आदि। इसी कारण कई बार कैंसर छुपा रह जाता है और लोग केवल बवासीर समझकर इलाज करते रहते हैं।

Q2. क्या बवासीर का इलाज खुद किया जा सकता है?

A. हां, यदि बवासीर प्रारंभिक अवस्था में है, तो इसे घरेलू उपायों, फाइबर युक्त भोजन, गुनगुने पानी में Sitz Bath और ओवर-द-काउंटर दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन यदि खून आना, दर्द या गांठ लगातार बनी रहे, तो डॉक्टर से जांच कराना अनिवार्य है, ताकि गंभीर बीमारी की संभावना को टाला जा सके।

Q3. एनल कैंसर कितनी उम्र में हो सकता है?

A. आमतौर पर एनल कैंसर की संभावना 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में अधिक होती है। लेकिन HPV (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) संक्रमण की वजह से 30–40 वर्ष की उम्र के युवा भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है या जो एनल सेक्स करते हैं, उनमें जोखिम ज्यादा होता है।

Q4. क्या एनल कैंसर का इलाज संभव है?

A. हां, यदि एनल कैंसर की पहचान प्रारंभिक चरण में हो जाए, तो इसका इलाज कीमोथेरेपी, रेडिएशन और कभी-कभी सर्जरी के माध्यम से सफलतापूर्वक किया जा सकता है। समय पर निदान होने पर कई मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं और सामान्य जीवन जीते हैं।

सलाह: कोई भी लक्षण बार-बार दिखे, या सामान्य दवा से ठीक न हो – तो बिना देर किए विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लें। जल्दी पहचान = जल्दी इलाज = बेहतर जीवन।

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