यह बात उस समय की है जब माधव राव मराठा राज्य के पेशवा थे और उस राज्य के न्यायधीश राम शास्त्री प्रधान जी थे राज्य में कौन न्याय अध्यक्ष रहेगा इसका फैसला पेशवा करते थे राम शास्त्री का कामकाज इतना बेहतर था कि कभी भी माधवराव उसमें हस्तक्षेप नहीं करते थे लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि मराठा राज्य के वफादार पेशवा के करीबी सरदार बीसाजी पंत लेले ने अंग्रेजों का एक समुद्री जहाज लूट लिया जिसमें कई कीमती समान था ,अंग्रेजों को जब इस बात की भनक लगी की यह लूट सरदार बीसाजी पंत लेले के द्वारा की गयी है तो वह फ़ौरन इसकी शिकायत राम शास्त्री जी से करने के लिए पहुंच गए । राम शास्त्री जी को लूट की बात पता चलते ही उन्होंने लेले के घर न्यायालय में हाजिर होने का संदेश भेजवा दिया लेकिन लेले न्यायालय में हाजिर नहीं हुआ लेले जब न्यायालय में हाजिर नहीं हुआ तो शास्त्री ने सैनिको को उसे गिरफ्तार करके हाजिर करने का हुक्म दिया !
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अंग्रेजों से राज्य में वैसे ही कोई खुश नहीं था और अंग्रेजो की शिकायत पर वरिष्ठ सरदार को इतना कठोर दंड मिला इस बात से पुरे राज्य में हड़कंप मच गया , और थोड़ी ही देर में ये पूरी खबर पुरे राज्य में फैल गयी ! राज्य के सभी सरदारों ने मिलकर ये फैसला लिया की रामशास्त्री की शिकायत हम सभी मिलकर माधवराव जी करेंगे ! और सभी इसकी शिकायत लेकर पेशवा माधवराव के पास गए और पूरी बात बताई पेशवा माधवराव ने राम शास्त्री को हाजिर होने का आदेश दिया माधवराव ने रामशास्त्री से पूछा की आखिर ऐसी क्या वजह थी की आपने लेले को इतना कठोर दंड दे दिया ! शास्त्री जी ने कहा श्रीमत मैंने जो भी फैसला लिया है निष्पक्ष होकर के ही लिया है अदालत के सामने कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता वहां सब बराबर होते हैं लेले ने जो अपराध किया है अगर कोई और भी इस अपराध को करता तो उसे भी मैं यही दंड देता ! माधवराव ने कहा फिर राज्य में सभी नाराज़ क्यों है रामशास्त्री जी ने कहा की किसी भी फैसले में सभी की अपनी अपनी राय होती है कुछ के लिए ये सही फैसला है और कुछ इसके खिलाफ है ! माधवराव ने पूछा क्या यह मराठा राज्य के हित में होगा कि अंग्रेजों की शिकायत पर हम अपने ही सरदार को दंडित कर रहे है ! शास्त्री जी ने कहा पेशवा के पास अपराधी को माफ करने का अधिकार है आप चाहोगे तो लेले को दिया गया दंड माफ किया जा सकता है लेकिन ये तभी मुमकिन है जब न्याय की कुर्सी पर रामशास्त्री की जगह कोई और बैठा होगा ! माधव राव जी ने कहा शास्त्री जी आप ने अगर फैसला लिया है तो जरूर ही राज्य के हित में होगा, आप के रहते मराठा राज्य पूरी तरह सुरक्षित है और आपके रहते हुये मुझे कभी अपमानित नहीं होना पड़ेगा ! शास्त्री जी ने माधव जी को बताया की ये ठीक है की लेले को अंग्रेजों की शिकायत पे दंड दिया गया है लेकिन आप ही बातये की यदि राज्य में न्याय के प्रति विश्वास नहीं रहेगा और न्यायालय की अवमानना होगी तो राज्य की शासन व्यवस्था को बिगड़ते देर नहीं लगेगी ! राज्य में न्याय सभी के लिए एक बराबर होना ही चाहिए ! तभी राज्य की शासन व्यवस्था दुरुस्त रहेगी !
कहानी का सार :-
न्याय सभी के लिए एक बराबर होना ही चाहिए न्याय में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता !