टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर सर्जरी (Tibia/Fibula Fracture): रॉड और स्क्रू के साथ रिकवरी समय और देखभाल प्रक्रिया
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर सर्जरी (Tibia/Fibula Fracture): रॉड और स्क्रू के साथ रिकवरी समय और देखभाल प्रक्रिया
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर (Fibula Fracture)ओपन रिडक्शन और इंटरनल फिक्सेशन (ORIF)
टिबिया और फिबुला पैर की निचली हड्डियां होती हैं, जिनका मुख्य कार्य वजन का समर्थन करना और पैरों को स्थिरता प्रदान करना है। जब इन हड्डियों में गंभीर फ्रैक्चर होता है, तो यह चलते-फिरते और सामान्य कार्यों को प्रभावित कर सकता है। जब हड्डियों का सही तरीके से जोड़ना और स्थिरता प्राप्त करना मुश्किल होता है, तो ओपन रिडक्शन और इंटरनल फिक्सेशन (ORIF) एक आवश्यक सर्जिकल प्रक्रिया होती है जो हड्डियों को स्थिर बनाए रखने और सही ढंग से ठीक होने में मदद करती है।
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर के कारण
टिबिया और फिबुला, पैर की निचली हड्डियां होती हैं, जो शरीर के वजन को सहन करती हैं और हमारे चलने-फिरने में सहायक होती हैं। इन हड्डियों में फ्रैक्चर तब होते हैं जब इन पर अत्यधिक या असामान्य बल पड़ता है। यहां हम उन कारणों का विस्तार से अध्ययन करेंगे जिनकी वजह से इन हड्डियों में फ्रैक्चर हो सकता है।
- हाई-इम्पैक्ट ट्रॉमा (High-impact trauma):
जब टिबिया और फिबुला पर अत्यधिक बल पड़ता है, जैसे कार दुर्घटनाएं, ऊंचाई से गिरना, खेलों में चोटें या कोई अन्य तीव्र चोटें, तो हड्डियां टूट सकती हैं। हाई-इम्पैक्ट ट्रॉमा आमतौर पर तेज गति, उच्च शक्ति और अचानक प्रभाव के कारण होता है, जो हड्डियों को दबाव या मोड़ देने के लिए पर्याप्त होता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को सड़क दुर्घटना में गंभीर चोट लगती है, तो टिबिया और फिबुला की हड्डियों में फ्रैक्चर हो सकता है। इसके अतिरिक्त, ऊंचाई से गिरने पर भी इन हड्डियों में फ्रैक्चर हो सकता है, क्योंकि गिरने के दौरान शरीर पर भारी दबाव पड़ता है।
- घुमावदार बल (Rotational forces):
घुमावदार बल या मोड़ने वाली चोटें भी टिबिया और फिबुला में फ्रैक्चर का कारण बन सकती हैं। यह तब होता है जब पैर अचानक एक दिशा में घूमता है या मुड़ता है, जिससे हड्डी में तनाव उत्पन्न होता है। यह विशेष रूप से खेलों में आम होता है, जैसे फुटबॉल, रग्बी, और बास्केटबॉल, जहां खिलाड़ी अचानक दिशा बदलते हैं या तेज़ी से मोड़ लेते हैं। इस घुमावदार बल के कारण हड्डी टूट सकती है, क्योंकि हड्डी को उस दिशा में बल झेलने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया होता।
- बार-बार तनाव (Repetitive stress):
तनाव फ्रैक्चर तब होता है जब किसी गतिविधि के दौरान हड्डी पर लगातार दबाव पड़ता है। यह विशेष रूप से दौड़ने जैसी गतिविधियों में होता है, जहां पैर लगातार जमीन से संपर्क करता है और हर कदम पर दबाव पड़ता है। लंबी दूरी की दौड़, नृत्य, या सैन्य प्रशिक्षण जैसी गतिविधियां, जो निरंतर चलने या दौड़ने पर जोर देती हैं, इस प्रकार के फ्रैक्चर का कारण बन सकती हैं। ऐसे में हड्डियां धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं, और एक बिंदु पर उनमें क्रैक आ सकते हैं।
- ऑस्टियोपोरोसिस या हड्डियों का कमजोर होना (Osteoporosis or weakened bones):
ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और उनकी घनत्व घट जाती है। जब हड्डियों में कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों की कमी होती है, तो वे टूटने के लिए अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। वृद्धावस्था में, या कुछ चिकित्सीय स्थितियों जैसे हाइपरथायरायडिज़्म, या लम्बे समय तक स्टेरॉयड का उपयोग करने से ऑस्टियोपोरोसिस हो सकता है। कमजोर हड्डियां हल्के से ही टूट सकती हैं, यहां तक कि मामूली दुर्घटनाएं भी फ्रैक्चर का कारण बन सकती हैं। ऐसे मामलों में, फ्रैक्चर बहुत कम दबाव के तहत भी हो सकता है, जो सामान्य परिस्थितियों में नहीं होता।
इन कारणों से टिबिया और फिबुला में फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ जाता है। फ्रैक्चर का इलाज जितना जल्दी किया जाता है, उतना ही बेहतर होता है, क्योंकि समय पर इलाज से हड्डियां सही तरीके से ठीक हो सकती हैं और भविष्य में किसी भी प्रकार की जटिलता को रोका जा सकता है।
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर के लक्षण
टिबिया और फिबुला की हड्डियों में फ्रैक्चर होने पर शरीर में कई प्रकार के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। ये लक्षण शरीर को यह संकेत देते हैं कि हड्डी में गंभीर चोट आई है और इसकी पहचान और उपचार जल्दी से किया जाना चाहिए। आइए इन लक्षणों को विस्तार से समझते हैं:
- तीव्र दर्द (Severe pain): टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर का सबसे सामान्य और प्रमुख लक्षण तीव्र दर्द होता है। जब हड्डी टूटती है या क्षतिग्रस्त होती है, तो वहां अचानक और तेज़ दर्द होता है, खासकर जब पैर को हिलाने या किसी भी प्रकार के मूवमेंट करने की कोशिश की जाती है। यह दर्द उस क्षेत्र में सबसे अधिक महसूस होता है, जहां फ्रैक्चर हुआ हो, और यह दर्द लगातार बना रह सकता है। दर्द के कारण रोगी सामान्य कार्यों में असमर्थ महसूस करता है और उसे चलने में भी कठिनाई होती है।
- सूजन (Swelling): जब टिबिया और फिबुला में फ्रैक्चर होता है, तो उस क्षेत्र में सूजन आ जाती है। यह सूजन रक्त वाहिकाओं और अन्य संरचनाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण होती है, जो आसपास के टिशू में द्रव संचारित होने की प्रक्रिया के कारण होती है। सूजन आमतौर पर चोट के तुरंत बाद होती है और इसे बर्फ लगाने से कुछ हद तक कम किया जा सकता है। सूजन हड्डी के टूटने का एक स्पष्ट संकेत है।
- विकृति (Deformity): फ्रैक्चर के कारण पैर का रूप असामान्य हो सकता है, जैसे कि पैर का झुकना, घुमाव या विकृत होना। यह विकृति तब होती है जब हड्डी टूटी होती है और सही स्थिति में नहीं होती। कभी-कभी, हड्डी बाहर की ओर भी निकल सकती है (ओपन फ्रैक्चर), जिससे विकृति और अधिक स्पष्ट होती है। इस विकृति को देखकर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक होता है, ताकि उपयुक्त इलाज किया जा सके।
- नीला-पीला या रंग में बदलाव (Bruising or discoloration): हड्डी के टूटने से रक्त वाहिकाएं भी क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, जिसके कारण चोट वाले क्षेत्र में रंग में बदलाव आता है। चोट के तुरंत बाद, क्षेत्र नीला (हैमतोमा) या लाल दिखाई दे सकता है, और समय के साथ यह रंग बदलकर पीला या हरा भी हो सकता है। यह घाव के आसपास की त्वचा में रक्त स्राव का संकेत होता है।
- वजन उठाने में असमर्थता (Inability to bear weight): जब टिबिया या फिबुला फ्रैक्चर होती है, तो पैरों पर वजन उठाना लगभग असंभव हो जाता है। यह दर्द और असंतुलन के कारण होता है, क्योंकि हड्डी ठीक से जुड़ी नहीं होती। इस स्थिति में, व्यक्ति चलने, खड़ा होने या पैर पर वजन डालने में असमर्थ हो सकता है। यह लक्षण किसी भी फ्रैक्चर का एक आम संकेत होता है और इलाज के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है।
- सांस का आना या झुनझुनी (Numbness or tingling sensation): यदि फ्रैक्चर के कारण नसों या रक्त वाहिकाओं को भी चोट पहुँचती है, तो व्यक्ति को पैर में झुनझुनी या सेंस की कमी महसूस हो सकती है। यह स्थिति तब होती है जब फ्रैक्चर से नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे सिग्नल्स ठीक से नहीं पहुंचते और व्यक्ति को पैर में झुनझुनी या सुन्नपन महसूस होता है। यह लक्षण गंभीर हो सकता है, और इसे अनदेखा नहीं करना चाहिए।
इन लक्षणों के आधार पर, टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर की पहचान की जा सकती है, और तुरंत चिकित्सा सहायता प्राप्त करना आवश्यक है। समय पर उपचार से हड्डी जल्दी ठीक होती है और आगे चलकर किसी गंभीर समस्या से बचा जा सकता है।
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर का निदान
टिबिया और फिबुला फ्रैक्चर का निदान करने के लिए डॉक्टर विभिन्न परीक्षणों और इमेजिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं। सही निदान से सटीक उपचार और रिकवरी प्रक्रिया निर्धारित की जा सकती है। जब कोई व्यक्ति टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर के लक्षणों का अनुभव करता है, तो डॉक्टर निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाते हैं:
- शारीरिक परीक्षण (Physical Examination):
शारीरिक परीक्षण निदान की पहली और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। डॉक्टर चोट के स्थान, विकृति, और सूजन का मूल्यांकन करते हैं। इस दौरान, डॉक्टर निम्नलिखित बातों पर ध्यान देते हैं:
- फ्रैक्चर का स्थान: डॉक्टर यह देखते हैं कि हड्डी कहां टूटी है और क्या कोई असामान्य स्थिति या विकृति उत्पन्न हुई है। यदि पैर का आकार या स्थिति असामान्य है, तो यह फ्रैक्चर के संकेत होते हैं।
- सूजन और दर्द: सूजन और दर्द की मात्रा का मूल्यांकन किया जाता है। सूजन आमतौर पर फ्रैक्चर वाले क्षेत्र में होती है, और यह दर्द के साथ जुड़ा होता है।
- मांसपेशियों और नसों का परीक्षण: डॉक्टर यह जांचते हैं कि हड्डी के फ्रैक्चर के कारण आसपास के मांसपेशियां और नसें प्रभावित हुई हैं या नहीं। इस दौरान वे पैर की गति और शक्ति का भी परीक्षण करते हैं।
- एक्स-रे (X-ray):
एक्स-रे टिबिया और फिबुला फ्रैक्चर का निदान करने के लिए सबसे आम और प्रमुख इमेजिंग तकनीक है। एक्स-रे से डॉक्टर हड्डी के टूटने के स्थान, प्रकार, और गंभीरता का निर्धारण करते हैं। यह प्रक्रिया बहुत जल्दी और आसान होती है, और इससे डॉक्टर को फ्रैक्चर की स्थिति को स्पष्ट रूप से समझने में मदद मिलती है। एक्स-रे द्वारा निम्नलिखित जानकारी प्राप्त की जा सकती है:
- फ्रैक्चर का प्रकार: क्या फ्रैक्चर खुला (ओपन) है या बंद (क्लोज़्ड)?
- फ्रैक्चर की गंभीरता: क्या हड्डी पूरी तरह से टूट गई है या केवल क्रैक आई है?
- हड्डी का विकृत होना: क्या हड्डी असमान रूप में टूटी है या सही स्थान पर है?
- सीटी स्कैन या एमआरआई (CT Scan or MRI):
यदि फ्रैक्चर जटिल है, या डॉक्टर को सॉफ्ट टिशू क्षति (जैसे मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं या नसों की चोट) का संदेह होता है, तो सीटी स्कैन या एमआरआई जैसी उन्नत इमेजिंग तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये परीक्षण विशेष रूप से तब उपयोगी होते हैं जब:
- हड्डी का सटीक विश्लेषण: सीटी स्कैन से हड्डी के टूटने के छोटे-छोटे हिस्सों का पता लगाया जा सकता है, जो एक्स-रे पर स्पष्ट नहीं होते।
- सॉफ्ट टिशू की स्थिति: एमआरआई से मांसपेशियों, लिगामेंट्स और नसों की स्थिति का स्पष्ट आकलन किया जा सकता है, खासकर तब जब फ्रैक्चर के बाद इन संरचनाओं में चोट लगी हो।
सीटी स्कैन और एमआरआई के माध्यम से अधिक सटीक जानकारी प्राप्त होती है, जिससे डॉक्टर को इलाज की योजना बनाने में मदद मिलती है। ये परीक्षण विशेष रूप से जटिल और गंभीर फ्रैक्चर मामलों में उपयोग किए जाते हैं, जहां केवल एक्स-रे पर्याप्त नहीं होते।
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर का उपचार
टिबिया और फिबुला फ्रैक्चर का उपचार फ्रैक्चर की गंभीरता, प्रकार और हड्डी के सही स्थान पर जुड़ने की स्थिति पर निर्भर करता है। उपचार दो प्रमुख प्रकारों में बांटा जा सकता है: गैर-सर्जिकल और सर्जिकल।
- गैर-सर्जिकल उपचार (Conservative Management):
मामूली फ्रैक्चर, जहां हड्डियां ठीक से जुड़ी होती हैं और कोई विकृति नहीं होती, के लिए गैर-सर्जिकल उपचार उपयुक्त होता है। इस उपचार में मुख्य रूप से कास्टिंग या स्प्लिंटिंग का उपयोग किया जाता है। इन विधियों में हड्डियों को स्थिर करने के लिए प्लास्टर या स्प्लिंट्स का उपयोग किया जाता है, ताकि हड्डियां सही स्थिति में जुड़ी रहें। इसके साथ ही, रोगी को कुछ समय के लिए आराम करने और प्रभावित पैर को गतिहीन रखने की सलाह दी जाती है। यह उपचार हल्के या सरल फ्रैक्चरों के लिए उपयुक्त होता है, और सामान्यत: इस प्रक्रिया से हड्डियां कुछ हफ्तों में ठीक हो जाती हैं।
- सर्जिकल उपचार (Surgical Treatment):
गंभीर या विस्थापित फ्रैक्चर, जहां हड्डियां स्थान बदल चुकी होती हैं या खुले फ्रैक्चर होते हैं, के लिए सर्जिकल उपचार की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में, ORIF (Open Reduction and Internal Fixation) सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी में हड्डियों को फिर से सही स्थिति में लाकर प्लेट, स्क्रू या रॉड के माध्यम से स्थिर किया जाता है, ताकि हड्डियां जल्दी और सही तरीके से जुड़ सकें। यह उपचार जटिल फ्रैक्चर मामलों में आवश्यक होता है, जहां बिना सर्जरी के हड्डी ठीक से जुड़ नहीं सकती।
ओपन रिडक्शन और इंटरनल फिक्सेशन (ORIF) क्या है?
ओपन रिडक्शन और इंटरनल फिक्सेशन (ORIF) एक सर्जिकल प्रक्रिया है जो गंभीर हड्डी फ्रैक्चरों के इलाज के लिए उपयोग की जाती है। इसमें दो प्रमुख चरण होते हैं:
- ओपन रिडक्शन (Open Reduction): ओपन रिडक्शन का मतलब है कि फ्रैक्चर को सीधे ऑपरेशन द्वारा ठीक किया जाता है। इस प्रक्रिया में, सर्जन हड्डियों को खोलकर (ऑपरेशन द्वारा) सही स्थिति में रखते हैं। हड्डियों को फिर से जोड़ने के लिए हड्डी को सर्जिकल तरीके से पुश या स्थानांतरित किया जाता है ताकि वे सही स्थिति में मिल सकें। इसका मुख्य उद्देश्य हड्डियों को ठीक से जोड़ना और उनकी सामान्य संरचना को बहाल करना है।
- इंटरनल फिक्सेशन (Internal Fixation): इसके बाद, इंटरनल फिक्सेशन की प्रक्रिया होती है, जिसमें हड्डियों को स्थिर करने के लिए विशेष उपकरण जैसे प्लेट, स्क्रू या रॉड का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण हड्डियों को जोड़ने और उन्हें स्थिर रखने के लिए अंदर लगाए जाते हैं। ये उपकरण आमतौर पर जैविक रूप से अनुकूल धातुओं से बने होते हैं, जैसे टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील, ताकि शरीर उन्हें आसानी से सहन कर सके और संक्रमण का खतरा न हो।
ORIF की आवश्यकता कब होती है?
- गंभीर फ्रैक्चर (Severe fractures): जब हड्डियां विस्थापित हो जाती हैं, यानी हड्डी अपनी सामान्य स्थिति से हट जाती है या असमान्य रूप से टूट जाती है, तब ORIF की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में, बिना सर्जिकल हस्तक्षेप के हड्डी ठीक से नहीं जुड़ सकती।
- खुले फ्रैक्चर (Open fractures): अगर हड्डी त्वचा को चीरते हुए बाहर निकल आती है (ओपन फ्रैक्चर), तो यह स्थिति बहुत गंभीर होती है। इसमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है और सर्जरी की आवश्यकता होती है ताकि हड्डी को ठीक से जोड़ा जा सके और किसी प्रकार के संक्रमण से बचा जा सके।
- सॉफ्ट टिशू क्षति (Soft tissue damage): यदि फ्रैक्चर के साथ सॉफ्ट टिशू जैसे मांसपेशियों, लिगामेंट्स, या नसों को भी नुकसान हुआ हो, तो ORIF सर्जरी जरूरी हो सकती है। इससे न केवल हड्डियों को स्थिर किया जाता है, बल्कि प्रभावित सॉफ्ट टिशू की मरम्मत भी की जाती है।
ORIF एक प्रभावी सर्जिकल उपचार है, जो जटिल और गंभीर हड्डी फ्रैक्चरों में हड्डियों को जल्दी और सही तरीके से ठीक करने में मदद करता है।
ORIF प्रक्रिया
ओपन रिडक्शन और इंटरनल फिक्सेशन (ORIF) प्रक्रिया एक सर्जिकल उपचार है, जो टिबिया/फिबुला जैसे हड्डी के फ्रैक्चर के लिए उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया चार मुख्य चरणों में बाँटी जाती है:
1. ऑपरेशन से पहले की तैयारी (Preoperative Preparation):
- चिकित्सीय मूल्यांकन (Medical Evaluation): सर्जरी से पहले, डॉक्टर रोगी का पूरा चिकित्सीय मूल्यांकन करते हैं। इसमें मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, वर्तमान स्थिति, एलर्जी, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का पता किया जाता है। साथ ही, खून की जांच, हृदय और श्वसन प्रणाली की जांच भी की जाती है ताकि सर्जरी के दौरान किसी भी संभावित जोखिम को कम किया जा सके।
- एनेस्थीसिया (Anesthesia): सर्जरी से पहले, रोगी को एनेस्थीसिया दिया जाता है। यह सामान्य एनेस्थीसिया हो सकता है, जिसमें रोगी पूरी तरह से सो जाता है, या क्षेत्रीय एनेस्थीसिया, जिसमें केवल शरीर के एक हिस्से को सुन्न किया जाता है, इस पर निर्भर करता है कि चोट कितनी गंभीर है और किस प्रकार की सर्जरी की जरूरत है। एनेस्थीसिया से रोगी को दर्द और असुविधा से मुक्त किया जाता है।
2. सर्जिकल चरण (Surgical Phase):
- चीरना और हड्डी का एक्सपोजर (Incision and Bone Exposure): सर्जरी की शुरुआत में, सर्जन प्रभावित हड्डी तक पहुंचने के लिए त्वचा और अन्य ऊतकों में एक चीरा (इंसीजन) लगाते हैं। यह चीरा हड्डी तक सही पहुंच के लिए किया जाता है, ताकि फ्रैक्चर को सही तरीके से ठीक किया जा सके। यह चीरा हड्डी के फ्रैक्चर के स्थान के आधार पर रणनीतिक तरीके से लगाया जाता है।
- फ्रैक्चर का रिडक्शन (Fracture Reduction): एक बार हड्डी तक पहुंचने के बाद, सर्जन हड्डी को सही स्थिति में लाते हैं। इसे रिडक्शन कहा जाता है, जिसमें टूटी हुई हड्डियों को एक साथ जोड़ने की प्रक्रिया होती है। यह चरण सुनिश्चित करता है कि हड्डी सही स्थिति में है, ताकि वह ठीक से जुड़ सके और रोगी को बाद में कोई समस्या न हो।
- इंटरनल फिक्सेशन (Internal Fixation): हड्डियों को स्थिर रखने के लिए, सर्जन प्लेट, स्क्रू या रॉड का उपयोग करते हैं। ये उपकरण हड्डियों को जोड़ने और स्थिर करने में मदद करते हैं। प्लेट या स्क्रू हड्डियों को मजबूती से जोड़ते हैं, जबकि रॉड आमतौर पर लंबी हड्डियों में इस्तेमाल होते हैं। ये उपकरण आमतौर पर टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील जैसे मजबूत और जैविक रूप से अनुकूल धातुओं से बने होते हैं, ताकि शरीर उन्हें स्वीकार कर सके और संक्रमण का खतरा कम हो।
3. घाव का बंद करना (Wound Closure):
एक बार हड्डी को स्थिर कर दिया जाता है, सर्जन घाव को सिलते हैं। सर्जिकल घाव को बंद करने के लिए सर्जन नेचुरल टिशू को जोड़ते हैं और फिर उपयुक्त सर्जिकल स्टिच (सिलाई) का उपयोग करते हैं। घाव को एक बार बंद करने के बाद, उसे पैक कर दिया जाता है, ताकि संक्रमण से बचा जा सके। इसके बाद, रोगी को निगरानी में रखा जाता है, ताकि सर्जरी के बाद किसी भी जटिलता को जल्दी से पहचाना जा सके।
ORIF प्रक्रिया का उद्देश्य हड्डी को सही तरीके से जोड़ना और स्थिर करना है, ताकि रोगी जल्द से जल्द ठीक हो सके। यह प्रक्रिया गंभीर फ्रैक्चरों के लिए आवश्यक होती है और सही तरीके से की गई सर्जरी से हड्डी जल्दी ठीक होती है और भविष्य में समस्याओं का खतरा कम होता है।
ORIF सर्जरी के बाद की रिकवरी
ORIF सर्जरी के बाद की रिकवरी कई चरणों में होती है और यह फ्रैक्चर की गंभीरता पर निर्भर करती है।
प्रारंभिक पोस्ट-ऑप देखभाल:
- दर्द का प्रबंधन: सर्जरी के तुरंत बाद दर्द होता है, जिसे दवाओं के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।
- प्रारंभिक गतिशीलता: रोगी को फ्रैक्चर वाले पैर पर वजन नहीं डालने के लिए कहा जाता है और उन्हें सहारे के लिए बैसाखी या वॉकर का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
- जटिलताओं की निगरानी: संक्रमण, रक्तस्राव या हार्डवेयर संबंधित समस्याओं की निगरानी की जाती है।
पुनर्वास और शारीरिक चिकित्सा:
- प्रारंभिक चरण (सप्ताह 1-6): सूजन कम करने, मांसपेशियों की कमजोरी रोकने और जोड़ों की गति बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- मध्य चरण (सप्ताह 6-12): धीरे-धीरे गतिशीलता और मांसपेशियों को मजबूत किया जाता है।
- अंतिम चरण (सप्ताह 12-24): पूर्ण वजन उठाने और शारीरिक चिकित्सा के माध्यम से ताकत और लचीलापन फिर से प्राप्त करना।
ORIF सर्जरी के लाभ
- जल्दी स्थिरता: फ्रैक्चर के स्थिरीकरण से जल्दी रिकवरी होती है और जटिलताओं का जोखिम कम होता है।
- सही संरेखण: सर्जरी हड्डियों को सही तरीके से जोड़ने में मदद करती है, जिससे स्थायी विकृति और दर्द से बचा जा सकता है।
- बेहतर ठीक होना: इंटरनल फिक्सेशन हड्डियों के बेहतर तरीके से जुड़ने में मदद करता है।
- जटिलताओं का जोखिम कम होना: प्लेट और स्क्रू के इस्तेमाल से हड्डियां जल्दी ठीक होती हैं और असामान्य रूप से जुड़ने का जोखिम कम होता है।
ORIF सर्जरी के जोखिम और जटिलताएं
ORIF सर्जरी में कुछ जोखिम हो सकते हैं, जैसे:
- संक्रमण: ऑपरेशन के क्षेत्र में संक्रमण का खतरा हो सकता है।
- हार्डवेयर समस्याएं: प्लेट, स्क्रू या रॉड टूट सकते हैं, ढीले हो सकते हैं या जलन पैदा कर सकते हैं।
- ब्लड क्लॉट्स: रक्तस्राव से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं, जैसे डीवीटी।
- नसों या रक्त वाहिकाओं को नुकसान: सर्जरी में नसों या रक्त वाहिकाओं को चोट लग सकती है।
- हड्डियों का ठीक से न जुड़ना: कभी-कभी हड्डियां ठीक से नहीं जुड़तीं, जिससे पुनः सर्जरी की आवश्यकता होती है।
ORIF सर्जरी के बाद का जीवन
ORIF सर्जरी के बाद, रोगी निम्नलिखित अपेक्षाएँ कर सकते हैं:
- जीवनशैली में बदलाव: अस्थायी जीवनशैली में बदलाव, जैसे कुछ शारीरिक गतिविधियों से बचना और सहारे का उपयोग करना।
- शारीरिक पुनर्वास: शक्ति, लचीलापन, और गतिशीलता को फिर से प्राप्त करने के लिए पुनर्वास कार्यक्रम।
- गतिविधियों में वापसी: उचित पुनर्वास के बाद, अधिकांश लोग 6 महीने से 1 साल में सामान्य गतिविधियों में लौट सकते हैं।
फ्रैक्चर और रॉड और स्क्रू रिकवरी समय
टिबिया/फिबुला फ्रैक्चर के इलाज में रॉड और स्क्रू के उपयोग के बाद की रिकवरी समय सामान्यतः 6 महीने से 1 साल तक हो सकता है। यह समय फ्रैक्चर की गंभीरता, सर्जरी के प्रकार और मरीज की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है। शुरुआत में, मरीज को प्रभावित पैर पर वजन नहीं डालने की सलाह दी जाती है, और डॉक्टर बैसाखी या वॉकर के उपयोग की सलाह देते हैं।
सर्जरी के बाद चलना
सर्जरी के बाद, अधिकतर रोगी पहले 6 सप्ताह में धीरे-धीरे वजन डालने लगते हैं, हालांकि पूरी तरह से वजन डालने की अनुमति 12 सप्ताह के बाद दी जाती है। इस दौरान शारीरिक चिकित्सा (फिजिकल थेरेपी) के जरिए मांसपेशियों और जोड़ की गति को बनाए रखने और मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता है। 12 सप्ताह के बाद, जब हड्डियां और सर्जिकल स्थल स्थिर हो जाते हैं, तो रोगी सामान्य गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकते हैं।
रॉड और स्क्रू के साथ फ्रैक्चर रिकवरी समय
रॉड और स्क्रू के साथ फ्रैक्चर की रिकवरी समय आमतौर पर 6-12 महीने तक हो सकता है, लेकिन यह कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे फ्रैक्चर की गंभीरता, उपचार का प्रकार, रोगी की उम्र और शारीरिक स्थिति। पहले कुछ सप्ताहों में, रोगी को आराम करने और प्रभावित अंग पर दबाव न डालने की सलाह दी जाती है। इसके बाद, धीरे-धीरे शारीरिक चिकित्सा के माध्यम से गतिशीलता और मांसपेशियों को मजबूत किया जाता है। इस दौरान, रोगी को समय-समय पर डॉक्टर की देखरेख और परीक्षण की आवश्यकता होती है, ताकि हड्डी सही तरीके से जुड़ सके।